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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 स्वतंत्रता संग्राम में जैन रहे हैं।' इस प्रस्ताव के पास हो जाने पर गांधी जी ने अपने संक्षिप्त सारगर्भित भाषण में कहा था- 'मैं आपको एक संक्षिप्त मंत्र देता हूं। इसे हृदय में आप पक्का बिठा लीजिए और अपनी प्रत्येक सांस के साथ इसे व्यक्त होने दीजिए, मंत्र है- " करो या मरो" और " भारत छोड़ो।" इस प्रयास में हम या तो आजाद होंगे या मर जायेंगे । ' 9 अगस्त के प्रातः कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गये। उन्हें देश के विभिन्न भागों में बन्द कर दिया गया। कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। देश के हर हिस्से में हड़तालें हुईं, प्रदर्शन हुये, गोलियां चलीं, लाठी चार्ज हुआ, अश्रुगैस छोड़ी गई, सारे देश में गिरफ्तारियां हुईं। लोगों ने सरकारी सम्पत्ति पर हमले किये, रेल पटरियां तोड़ी गईं और डाकतार व्यवस्था में रुकावटें पैदा की गईं। अनेक स्थानों पर जनता की पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई। आन्दोलन के समाचार प्रकाशित करना प्रतिबंधित कर दिया गया, फिर भी गुप्त समाचार पत्र छपते और बंटते रहे। वर्ष के अन्त में लगभग 60000 स्वाधीनता सेनानी विभिन्न जेलों में बन्द कर दिये गये। सैकड़ों की मृत्यु हुई। मरने वालों में वृद्ध, बच्चे, महिलाएं सभी थे। प्रदर्शन में भाग लेने के कारण 73 वर्षीय मातंगिनी हाजरा को तमलुक (बंगाल) में, 13 वर्ष की कनकलता बरुआ को गोहपुर (आसाम) में, 19 वर्षीय साबूलाल जैन को गढ़ाकोटा, सागर (म0प्र0) में, उदयचंद जैन को मण्डला (म0प्र) में गोली से उड़ा दिया गया। पटना में सात तरुण विद्यार्थियों एवं अन्य सैकड़ों की गोली लगने से मौत हुई। देश के कुछ भाग जैसे उत्तर प्रदेश में बलिया, बंगाल में तमलुक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारावाद, उड़ीसा में बालासौर तथा थलचर आदि ब्रिटिश शासन से मुक्त कर लिये गये और वहां जनता की समानान्तर सरकारें बनीं। पूरे महायुद्ध के दौरान जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ अली, एम0एम0 जोशी, राम मनोहर लोहिया आदि अनेक नेताओं द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रहीं । इसी दौरान बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा। शासन ने कोई व्यवस्था नहीं की। जिस कारण लगभग 30 लाख लोग अकाल ही काल के गाल में समाहित हो गए। कहा जाता है कि यह अकाल संसार का सबसे बड़ा मानव कृत अकाल था । जहाँ एक ओर हजारों की तादाद में स्त्री, पुरुष और बच्चे भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा था। यह अकाल सरकार की दमन नीति का ही एक अंग था। विदेशी शासन के अभिशाप की इससे अधिक नृशंस मिसाल नहीं मिल स क त I कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार 34 लाख व्यक्ति इस अकाल में भूख से मरे और लगभग 46 प्रतिशत आबादी को भंयकर बीमारियां हुईं। दूसरे विश्वयुद्ध के प्रारम्भिक चरण में जापान को भारी सफलता मिली, सिंगापुर तक उसका अबाध कब्जा हो गया। हजारों ब्रिटिश सैनिकों को, जिनमें भारतीय सैनिक ही अधिक थे, आत्मसमर्पण करना पड़ा। इन सैनिकों की मदद से 'आजाद हिन्द फौज' की स्थापना, जनरल मोहन सिंह ने की। इसी बीच 1941 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से एक पनडुब्बी में यात्रा कर सिंगापुर पहुंचे। उस समय आजाद हिन्द फौज में 45000 सिपाही थे। 1943 में नेताजी ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अन्तरिम सरकार की घोषणा की। उनका यह ऐतिहासिक भाषण जापान के सहयोग से विश्वभर में प्रसारित किया गया। इसमें उन्होंने यह प्रसिद्ध नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'। इसके बाद सभी ने सुभाषचंद्र बोस को For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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