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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 स्वतंत्रता संग्राम में जैन में समर्थ नहीं है।' इस रिपोर्ट में प्रारम्भ किये जाने वाले सुधारों की भी चर्चा थी। इन सुधारों पर विचार करने के लिए बम्बई में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन बुलाया गया, जिसकी अध्यक्षता सैयद हसन इमाम ने की। इस अधिवेशन में सुधारों को घोर निराशाजनक बताया गया। 1915 में भारत के राजनैतिक वातावरण में एक नये व्यक्ति का प्रवेश हुआ, जिसने आतताइयों से लड़ने का एक अहिंसक तरीका ईजाद किया था, जिसे 'सत्याग्रह' कहा गया एवं जिसका अफ्रीका में सफल प्रयोग हो चुका था। यह नया व्यक्तित्व था मोहनदास करमचन्द गाँधी। गाँधी जी अपने 'सत्याग्रह' का झंडा अफ्रीका में गाड़ चुके थे। भारत आकर उन्होंने आरंभिक संघर्ष चंपारण (बिहार) से प्रारंभ किया। वह वहां किसानों को अत्याचार से मुक्त कराने हेतु गये थे। 1917 में सरकार ने उन्हें चंपारण छोड़कर जाने का आदेश दिया, पर उन्होंने नहीं माना। अन्ततः सरकार ने अत्याचारों की जांच की एवं उनका निराकरण किया। यह गाँधी जी की भारत में पहली राजनैतिक सफलता थी। इस सफलता के बाद लगभग राजनैतिक परिवेश धीरे-धीरे उनके चारों ओर इकट्ठा होने लगा एवं वह केन्द्र बिन्दु बन गये। गाँधी जी ने आन्दोलन को नई दिशा देने एवं उसे जन-जन से सम्बन्धित करने के लिये अस्पृश्यता की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाया। उच्च जातियों द्वारा 'अछूत' समझे जाने वाले लाखों लोगों का जीवन उठाने, उन्हें सामाजिक मान्यता प्रदान करने के कार्य में वह जुट गये। उन्होंने अपने पत्र का नाम भी 'हरिजन' रखा। उन्होंने अपने आश्रम में अपने अनुयायियों को वह सब कार्य करने की प्रेरणा दी जो उच्च जाति के लोग नहीं करते थे, जिसमें अन्य कार्यों के साथ शौचालय साफ करने का काम भी था। सार्वजनिक जीवन में जुड़ने के पूर्व गांधी जी ने देश के प्रत्येक हिस्से का सघन दौरा किया, उन्होंने पाया कि गांव नितान्त दयनीय स्थिति में हैं। वहां श्रम का मूल्य ही नहीं है। उनके पास काम भी नहीं है। हर हाथ को काम देने के लिए उन्होंने खादी का प्रचार किया। गांधी जी ने प्रत्येक कांग्रेसी एवं राष्ट्रभक्त को खादी पहनने की प्रेरणा दी। आगे चलकर खादी. आन्दोलन का आवश्यक अंग बन गई। गांधी जी ने चरखे को भी इतना प्रोत्साहन दिया कि आगे चलकर वह झंडे का 'केन्द्र-चिह्न' बन गया। खादी के प्रचार से गांवों की माली हालत बदली, साथ ही स्वतन्त्रता आन्दोलन। स्वदेशी भावना गांव गांव तक पहुंच गयी। इससे स्वाधीनता आन्दोलन को व्यापकता एवं जन-जन से जुड़ाव प्राप्त हुआ। 1919 में मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड के सुधारों के अन्तर्गत विधान मण्डलों का निर्माण किया गया किन्तु उसके अधिकार न के बराबर रहे। इसी समय 'रोलेक्ट एक्ट' बना, जिसके अनुसार बिना किसी मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को जेल में डालने का अधिकार शासन के पास सरक्षित था। इसका विरोध हुआ। कई नेताओं एवं विधान परिषद् के सदस्यों ने इस्तीफे दिये। मुहम्मद अली जिन्ना (बाद में पाकिस्तान के संस्थापक) ने अपने इस्तीफे में कहा 'जो सरकार शांतिकाल में ऐसे कानून को स्वीकार करती है वह अपने को सभ्य सरकार कहलाने का हक खो देती है।' इस कानून के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को 'राष्ट्रीय अपमान दिवस' मनाया गया। सारे देश में व्यापक रूप से प्रदर्शन एवं हडतालें आयोजित की गईं। ___10 अप्रैल 1919 को दो राष्ट्रवादी नेता श्री सत्यपाल और डॉ) सैफुद्दीन किचलू गिरफ्तार कर लिये गये। 13 अप्रैल 1919 को इनकी गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के पास एक छोटे से पार्क, 'जलियांवाला For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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