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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 स्वतंत्रता संग्राम में जैन उपक्रम : दो स्वतंत्रता आन्दोलन : एक सिंहावलोकन हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही 'सोने की चिड़िया' कहा जाता रहा है, जो इसकी समृद्धि और विपुल प्राकृतिक सम्पदा का सूचक है। इस समृद्धि की कहानी सुनकर यूरोप में पुर्तगालियों ने सबसे पहले भारत से व्यापार सम्बन्ध बढ़ाना प्रारम्भ किया। भारत से व्यापार के सभी मार्गों पर तुर्कों का आधिपत्य था, इसीलिए पुर्तगालियों को नये समुद्री मार्ग की खोज करनी पड़ी। 'वास्को-डि-गामा' नामक पुर्तगाली अफ्रीका महाद्वीप के चक्कर लगाता हुआ 20 मई 1498 को कालीकट पहुँचा और वहाँ के राजा जमोरिन से एक संधि की। सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पुर्तगालियों ने भारत से जोर-शोर से व्यापार करना आरम्भ कर दिया। पुर्तगालियों की देखा-देखी हालैण्ड, इंग्लैंण्ड और फ्रांस के व्यापारियों ने भारत से व्यापार करने का निश्चय किया। लार्ड मेयर की अध्यक्षता में 22 दिसम्बर 1599 को अंग्रेज व्यापारियों ने इस उद्देश्य से एक संस्था की स्थापना करने का निर्णय लिया। 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटिश सम्राज्ञी ने भारत से व्यापार करने के लिए अंग्रेज व्यापारियों को अधिकार पत्र (Charter) दिया, जिसके द्वारा 'ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी' का निर्माण किया गया। 1664 में लुई चौदहवें ने भारत से व्यापार करने के लिए 'फ्रेञ्च ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना की। इस प्रकार सत्रहवीं शताब्दी तक भारत से अनेक यूरोपीय देशों ने अपने व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ा लिये थे। फलत: उनमें आपस में प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष होने लगा। पहली मुठभेड़ में पुर्तगाल और हालैण्ड के व्यापारी समाप्त हो गये। व्यापारिक और राजनैतिक प्रभुत्व के लिए लड़ाई मुख्यतः अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य हुई, जिसमें फ्रांसीसी हार गये। इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारतीय नबाबों और राजाओं को हराकर अपना राजनैतिक प्रभुत्व जमाना प्रारम्भ कर दिया। प्लासी और बक्सर के युद्धों के बाद, बंगाल, बिहार और उड़ीसा के शासन पर कम्पनी का आधिपत्य हो गया तथा दिल्ली का बादशाह उनका पेंशनर बन गया। 1773 से 1856 तक कम्पनी ने देशी रियासतों से छोटी-बड़ी लडाइयां लड़ीं और उन्हें परास्त करके विस्तृत भू-भाग को अपने अधिकार में ले लिया। तदनन्तर अंग्रेज अत्यन्त सस्ते दामों पर कच्चा माल इंग्लैण्ड भेजने लगे और वहाँ निर्मित सामान भारत में अधिक मूल्य पर विक्रय करने लगे। अंग्रेजों की इस नीति से इंग्लैंड के उद्योगों की तो उन्नति हुई, लेकिन भारतीय व्यापार, वाणिज्य और उद्योग-धन्धे पूरी तरह चौपट हो गये। अंग्रेजों की भू-राजस्व तथा भूमि सम्बन्ध ी नीतियों के कारण भारतीय किसान विपन्न हो गये और प्रशासनिक दबाव तथा अन्य कारणों से जमींदार भी असंतुष्ट हो गये। 19वीं शती के पूर्वार्द्ध में ईसाई मिशनरियों ने भारत में अपना-अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। चिकित्सा, मानव सेवा, शिक्षा तथा सुदूर ग्रामीण इलाकों में लोगों को जीवनोपयोगी सुविधायें देने के बहाने उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास किया। ईसाई मिशनरियों द्वारा अशिक्षित तथा निर्धन ग्रामवासियों का व्यापक पैमाने पर कराया जाने वाला धर्मान्तरण हिन्दू तथा इस्लाम धर्मावलम्बियों के लिए चिन्ता का विषय बन गया। सार्वजनिक स्थानों पर For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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