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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड ___19 आधुनिक युग (लगभग 1756 से 1947 ई०) आधुनिक युग के देशी राज्यों में भी पूर्व की भाँति जैन भारी संख्या में उच्च पदों पर आसीन रहे। विस्तार भय से अत्यंत संक्षेप में ही उनका परिचय यहाँ दिया जा रहा है। मेवाड़ोद्धारक भामाशाह के संबंधी कर्मचन्द बच्छावत के वंशज अगरचंद बच्छावत को मेवाड़ के राणा अरिसिंह द्वितीय ने माण्डलगढ़ का दुर्गपाल तथा उस जिले का शासनाधिकारी बनाया था। बाद में वह राणा के मंत्री भी बन गये। अगरचंद के ज्येष्ठ पुत्र देवीचन्द जहाजपुर दुर्ग के शासक रहे। मेहता शेरसिंह, मेहता गोकुलचंद, मेहता पन्नालाल, सोमचन्द गांधी, शिवदास गांधी, मेहता मालदास, मेहता नाथजी, मेहता लक्ष्मीचंद, मेहता जोरावर सिंह आदि उदयपुर के राजाओं के मंत्री/ किलेदार आदि रहे थे। जोधपुर राज्य में भी मेहता वंश राज्य के दीवान पद पर रहा। इनमें मेहता सवाईराम, सरदारमल, ज्ञानमल, नवलमल, रामदास, चैनसिंह उल्लेखनीय हैं। इसी तरह जोधपुर राज्य में भण्डारी वंश भी दीवान : शासक कोषाध्यक्ष आदि पदों पर रहा। इनमें गंगाराम, लक्ष्मीचंद, बहादुरमल, किशनमल के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्दुराज सिंघवी और धनराज सिंघवी सेनापति आदि पदों पर रहे थे। बीकानेर राज्य के महाराज अनूपसिंह (1669-1698) से खरतरगच्छाचार्य जिनचन्द्रसूरि का पत्राचार चलता था। यहीं के राजा सूरतसिंह (1787-1828) के दीवान अमर चन्द्र सुराना थे। कहा जाता है कि उन्हें झूठा आरोप लगाकर मृत्युदण्ड दे दिया गया था। जैसलमेर राज्य के राजा मूलराज या मूलसिंह ने, जो 1761 में गद्दी पर बैठे, मेहता स्वरूप सिंह को अपना प्रधानमंत्री बनाया। एक कुचक्र के तहत स्वरूप सिंह की भी हत्या कर दी गई। स्वरूप सिंह के पुत्र मेहता सालिमसिंह को मूलराज ने अपना मन्त्री बनाया था। सालिमसिंह ने अपने पिता के हत्यारों से चुन-चुनकर बदला लिया। राजा मूलराज द्वारा अंग्रेजों से सन्धि करने का भी सालिमसिंह ने विरोध किया था। जयपुर राज्य में भी इस युग में अनेक जैन दीवान होते रहे। खण्डेलवाल जैन सदाराम के पुत्र दीवान रतनचन्द साह 1756 से 1768 तक दीवान रहे। इन्हीं दीवान ने जयपुर में अपने भाई बधीचंद के नाम से एक विशाल जिनमन्दिर बनवाया था। अनन्तराम खिन्दूका, बालचंद छाबड़ा, नैनसुख खिन्दूका, संघी नन्द लाल गोधा, जयचन्द साह, संघी मोतीराम गोधा, भीवचन्द छाबड़ा, जयचन्द छाबड़ा, अमरचन्द सोगानी, जीवराज संघी, मोहनराम संघी, श्योजीलाल पाटनी, भगतराम बगड़ा, राव भवानीराम, सदासुख छाबड़ा, अमरचंद पाटनी, रामचन्द्र या राजचन्द्र छाबड़ा, मन्नालाल छाबड़ा, कृपाराम छाबड़ा, लिखमीचंद छाबड़ा, नोनदराम खिन्दूका, संघी हुकुमचन्द, मानक लाल ओसवाल आदि जयपुर राज्य के दीवान रहे। भरतपुर राज्य में राजा सूरजमल के काल में चांदुवाड़गोत्रीय संघई मयाराम राज्य के पोतदार (खजांची) और महाराज के मोदी थे। इनके पुत्र संघई फतहचन्द भी उन पदों पर रहे। फतहचन्द के आश्रित एवं सहायक पोतदार पण्डित नथमल विलाला ने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी, जिनमें 1767 में लिखित 'सिद्धान्तसार दीपक' प्रमुख है। यह रचना उन्होंने फतहचन्द के पुत्र जगन्नाथ के प्रबोध के लिए की थी। मैसूर राज्य पर जब टीपू सुल्तान को हराकर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तब पुराने राजवंश के राजकुमार इम्मडि कृष्णराज ओडेयर को गद्दी सौंप दी। धर्मस्थल के जैन प्रमुख कोमार हेग्गडे की प्रार्थना पर राजा ने पूर्व प्रदत्त ग्रामादि दे दिये थे। इस राजा ने 1828 के लगभग केलसूर के जिनमंदिर में चन्द्रप्रभु, For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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