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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमगण्ड 405 प्रोत्साहित करते हैं। नारियाँ भी अपने इस मान की आन जिस शान से निभा रहीं हैं वह भी सराहनीय एवं अनुकरणीय है। हमारे सामने श्री कमला नेहरू, कस्तूरबा व सत्यवती देवी के ज्वलन्त उदाहरण मौजूद हैं, जिनकी अन्तिम साँस में भी यही पुकार थी, 'भारत हो स्वतन्त्र हमारा।' श्रीमती विजयलक्ष्मी, अरुणा देवी आदि देवियाँ जिस दक्षता से इस राजनैतिक क्रान्ति का नेतृत्व कर रहीं हैं उससे यह स्पष्ट ज्ञात है कि भारतीय नारी की वह अतीत की योग्यता नष्ट नहीं हुई। पुरुषों की यह भावना, कि नारी में राजनैतिक एवं सामाजिक कार्य करने की योग्यता नष्ट हो गयी है, नितान्त गलत सिद्ध हुई। नारी पुरुषों से अधिक त्याग एवं बलिदान कर सकती है। उसका अन्त:स्थल अत्यन्त कोमल होता है। एक विलासिनी नारी भी क्षणमात्र में पक्की क्रान्तिकारिणी बन सकती है। जिस वक्त भारत के नेता श्री सुभाष बाबू ने सन् 1944 में रंगून में भारतीयों की एक विराट सभा में यह माँग पेश की कि, 'जो भारत के स्वाधीनता संग्राम में हाथ बँटाना चाहते हैं वे आगे बढ़े एवं इस प्रतिज्ञा-पत्र पर अपने खून से हस्ताक्षर करें', सारी सभा में सन्नाटा छा गया। इसी समय जो सबसे आगे आयीं एवं इस युद्ध की सामग्री बनीं वे थीं इस शस्यश्यामला भारत की सत्रह वीरांगनायें जिन्होंने अपने रक्त से उस प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किये। बस! फिर क्या था। नारियों का साहस देखकर पुरुषों में भी जोश छा गया एवं थोड़ी सी ही देर में समस्त जनसमूह ने अपने रक्त से उस मातृभूमि के स्वतन्त्रता प्रतिज्ञा-पत्र पर मोहर लगायी। देखा आपने ! नारी के आगे कदम बढ़ाने से पुरुषों में कैसा जोश फैला। इसी कारण तो देश के कोने-कोने से यह आवाज आ रही है कि नारी को राजनैतिक क्रान्ति में अवश्य भाग लेना चाहिए। अतीत में भारतीय नारी प्रत्येक राजनैतिक कार्य में भाग लेती थी। इस बात का साक्षी हमारा इतिहास है। राजा हर्षवर्धन की बहिन राजश्री भाई के साथ सभाभवन में आती थीं एवं राज्य की प्रत्येक समस्या सुलझाने में भाग लेती थीं। रानी दुर्गावती व लक्ष्मीबाई ने तो देश के स्वातन्त्र्य युद्ध में तोप एवं गोलेबारी के बीच इस शौर्य एवं दक्षता से तलवार चलायी कि उनके शत्रु भी उनकी योग्यता की सराहना करने लगे। प्राचीन भारत में महाराष्ट्र की अहिल्याबाई, झाँसी की लक्ष्मीबाई व दिल्ली की रजिया बेगम के ज्वलन्त उदाहरण पाये जाते हैं जो कि भारत में अंग्रेजी राज्य से पूर्व इस ऐतिहासिक काल में कुशल शासन करती थीं। हम अपने इस भूतकाल की भाँति भविष्य में भी भारतीय नारी के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेंगी। ___ नारी में योग्यता एवं साहस का अभाव नहीं है। उसे तो पुरुषों की उपेक्षा ने ही अबला बना दिया है। यदि उसे उचित शिक्षा दी जाये एवं उसके छोटे-छोटे महत्त्वपूर्ण कार्यों की हँसी व उपेक्षा न की जावे और उसे उत्साहित किया जावे तो आज भी भारतीय नारी अतीत के नारी इतिहास की पुनरावृत्ति कर सकती है। यह बात भारत के इस राजनैतिक संघर्ष ने स्पष्ट बता दी है। असहयोग आन्दोलन में, नमक कानून तोड़ने में, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में, पिकेटिंग व सत्याग्रह में, अंग्रेजी नौकरशाही की गोलियों के सामने सीना खोलकर खड़ी होने में, जेल तक जाने में भी भारतीय नारी नहीं हिचकी। जब श्री सुभाष बोस ने "आजाद हिन्द सेना'' की स्थापना की तब उन्होंने "झाँसी की रानी सैनिकाओं की एक रेजीमेन्ट' बनायी एवं "डा0 लक्ष्मीनाथन" उस रेजीमेन्ट की सेनानी थीं। इन्हें भी पुरुषों की भाँति युद्ध-शिक्षा दी गयी एवं जब स्वाधीनता संग्राम आरम्भ हुआ तब इनको फील्ड अस्पतालों में घायल सैनिकों की सेवा के लिए नियुक्त किया, For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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