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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 400 स्वतंत्रता संग्राम में जैन मिलेगा। तब जापान से भी न रहा गया । वह भी इन दो आततायियों का साथी बना और तीनों मिलकर संसार की लूट पर उतर गये। पर तीनों बुरी तरह विफल हुए क्योंकि इनमें सच्ची राष्ट्रीयता नहीं थी। ये सारे संसार को लूटकर अपने भरे हुए पेट को और भी भरना चाहते थे। किन्तु इनकी बड़ी दुर्दशा हुई। ये औरों का तो कुछ भी न छीन सके पर अपने आपका सदा के लिये अन्त कर दिया। आज जर्मन, इटालियेन और जापानीज राष्ट्र कहाँ हैं ? जो जापान संसार के उदाहरण की वस्तु बना हआ था. आज विदेशियों के द्वारा बरी तरह पददलित किया जा रहा है। इसका कारण यही है कि कई वर्षों से उसकी सच्ची राष्ट्रीयता नष्ट हो रही थी। रूस विजय के पहले उसमें सच्ची राष्ट्रीयता थी तभी उसने रूस पर विजय पायी थी। इसके बाद तो उसमें अहंकार आया और वह पतन की ओर जाने लगा। चीन, कोरिया आदि की राष्ट्रीयता पर जो उसने अत्याचार किये, उसका फल उसको अब मिल रहा है। जर्मनी की सच्ची राष्ट्रीयता बहुत लम्बे समय से नष्ट हो चुकी थी। इसलिये वह 14-18 के महायुद्ध में हारा। इस 39-45 के संसार युद्ध में भी उसकी पराजय का कारण यही है कि वह अन्य सब राष्ट्रों की जन्मसिद्ध स्वाधीनता छीनकर उन पर अपना शासन करना चाहता था। ऐसी कलुषित मनोवृत्तियाँ अपने ही राष्ट्रहित के लिये विघातक हैं। ऐसे राष्ट्र अन्त में स्वयं ही पराधीन बनकर अपने पापों के दुष्परिणामों को बुरी तरह भोगते हैं। सिकन्दर, मुहम्मद गजनवी, अलाउद्दीन, चंगेजखाँ, तैमूरलंग, नादिरशाह, कैसर, हिटलर, मुसोलिनी और टोजों आदि किसी में भी सच्ची राष्ट्रीयता नहीं थी। हाँ, ये लुटेरे अथवा नर-संहारक जरूर थे। सच्ची राष्ट्रीयता के उदाहरण हैं मुस्तफा कमालपाशा, अब्राहमलिंकन, जनरल वाशिंगटन, पीटर दी ग्रेट, गैरी वाल्डी, मेजिनी, काऊर, प्रिंस विस्मार्क, लेनिन और छत्रपति शिवाजी आदि। अपने स्वार्थ के लिये दूसरे देशों को अपने आधीन रखने वाला ब्रिटेन भी आज सच्ची राष्ट्रीयता से वंचित है। जो दूसरों की राष्ट्रीयता का अपहरण किये हुए है वह स्वयं अपने आपको कैसे राष्ट्रीय कह सकता है। हमारा देश इस समय स्वतन्त्रता के द्वार पर है। इसका अब तब निर्माण हो रहा है। इस नवनिर्माण में इस बात का समावेश रहेगा कि सब स्वतन्त्र हों, कोई किसी के आधीन न रहे। प्रत्येक देश का स्वाधीन रहने का जन्मसिद्ध अधिकार है। उस अधिकार को जो छीनना चाहे, उसका सम्पूर्ण शक्ति लगाकर सामना करना राष्ट्रीयता है। दूसरों की स्वाधीनता को छीनकर जो अपनी वृद्धि करना चाहते हैं वे कभी राष्ट्रीय नहीं है। संसार में शांति स्थापित तभी हो सकती है, जब कोई भी पराधीन नहीं रहे। दूसरे की स्वाधीनता का अपहरण करना अराष्ट्रीयता है। हमारे देश के नेता महात्मा गांधी आदि सदा से इसका विरोध करते रहे 000 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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