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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 396 स्वतंत्रता संग्राम में जैन दिया गया है। पत्र ने अपने 16 मई 1946 के अंक में राष्ट्रीयता के विषय में लिखा था- " जैन समाज ने दूसरे समाजों की तरह अलग-अलग अपने राजनीतिक दावे नहीं रखे, विशेषाधिकार मांगकर कभी देश की प्रगति में बाधा नहीं पहुँचाई और धर्म संस्कृति आदि की स्वतन्त्रता होते हुए भी कभी अपने लिए किसी स्थान या स्वतन्त्र राष्ट्र की कल्पना नहीं की । " जोधपुर से प्रकाशित होने वाले " ओसवाल " ( मई 1921 ) के अंक में प्रकाशित राष्ट्रीय गौरव से युक्त एक पद्य द्रष्टव्य है 44 " बढ़ो - बढ़ो पीछे मत हटना, भारत का कल्याण " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करो । जननी जन्म भूमि चरणों में जीवन का बलिदान करो ।। " इसी तरह " तरुण ओसवाल" (जनवरी 1940) में प्रकाशित निम्न पंक्तियाँ भी कितनी उत्प्रेरक हैं , मोहपाश को तोड़ देश - हित, सह लो सब संकट अरु सुभाष जवाहर सम भारत के युवक वीर बनते योद्धा हम स्वतन्त्रता के, ध्येय मंत्र जपते ‘अनेकान्त” (सम्प्रति दिल्ली से प्रकाशित ) ने अपने अनेक अंकों में गांधी जी के जेल जाने पर पत्र के वर्ष 1 किरण 6-7 में लिखा गया है- " 'तरुण नींद को छोड़ पहन लो सत्याग्रह का सैनिक वेष । क्लेश ।। जाओ । For Private And Personal Use Only जाओ ।। ' राष्ट्रीयता का समर्थन किया था। "महामना निष्पाप, राष्ट्रहित जग के प्यारे, हिंसा से अतिदूर, सौम्य बहुपूज्य हमारे। गांधी से नररत्न जेल में ठेल दिये हैं, क्या आशा वे धरे नहीं जो जेल गये हैं ।। " “वीर” (सम्प्रति नई दिल्ली से प्रकाशित) जैन समाज में सुधारवादी पत्र के नाम से प्रसिद्ध था। उसे जैन समाज के राजा राममोहन राय कहे जाने वाले ब्र0 शीतल प्रसाद जी जैसे समाज सुधारकों का सहयोग मिला। कुरीतियों उन्मूलन में पत्र अपनी उपमा आप था। इसके साथ यह राष्ट्रीय अखबार भी था। डॉ० जयकुमार 'जलज' ने ठीक ही लिखा है- " वीर पाठशालावादी और परीक्षाफलछापू अखबार नहीं था। वह जैन होते हुए भी एक व्यापक और उदार राष्ट्रीय अखबार था। उसके सम्पादक खुद स्वतन्त्रता आन्दोलन में सपत्नीक जेल जा चुके थे। वे गांधीवादी थे। ... उनका पत्र उनके राष्ट्रीय विचारों का वाहक बन गया था। आजादी, देशभक्ति, गांधी, नेहरू, सुभाष पर तथा ढिल्लन, सहगल, शाहनवाज की गिरफ्तारी के विरोध जैसे विषयों पर रचनायें छपती थीं। राष्ट्रीय समाचारों, निर्णयों और घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था ( द्र० तीर्थंकर, अगस्त - सितम्बर, 1977, पृष्ठ 169 ) "" "दिगम्बर जैन " (मासिक) भी राष्ट्रीय समाचारों को विस्तार से छापता था। पत्र के श्रावण, वि० सं० 1978 (1921 ई0) में समाचार छपा कि पिठोरिया (सागर) में हरिश्चन्द्र जैन को स्वराज्य कार्य में योग देने के लिए छह माह की सजा हुई है। इसी तरह पौष, वि० सं० 1988 ( 1931 ई0) के अंक में " जेल जा चुके हैं" शीर्षक से समाचार छपा है कि-'सरकारी वर्तमान आर्डीनेंस के कारण अनेक जैन भाई भी जेल जा चुके हैं, उसमें से कुछ नाम यह हैं-छोटालाल घेला भाई गांधी, अंकलेश्वर, शान्तिलाल हरजीवनदास सोलीसिटर
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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