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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 380 www.kobatirth.org 31-1-1986 को कोतमा (शहडोल) में आपका देहावसान हो गया। आ - ( 1 ) म प्र स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-124 (2) स्व) आ० श० पृष्ठ- 163 श्री हीरालाल जैन पचौर, जिला-राजगढ़ (म0प्र0) के श्री हीरालाल जैन, पुत्र- श्री कालूराम जैन का जन्म 1905 में हुआ। 1942 के आन्दोलन में आपने भाग लिया, जिसमें एक माह का कारावास आपको भोगना पड़ा। आ - (1) म0 प्र0 स्व0 सै0 भाग 5 पृष्ठ-128 श्री हीरालाल जैन होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री हीरालाल जैन, पुत्र - श्री चुन्नीलाल का जन्म 1924 में हुआ। 1942 के आंदोलन में आपने सक्रिय भाग लिया फलस्वरूप 6 माह का दंड आपको भोगना पड़ा। आ) - (1) म०) प्र० स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ 343 श्री हीरालाल जैन श्री हीरालाल जैन का जन्म 4 मई, 1922 को हरदा (म0प्र0) में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री हजारीमल जैन था, जो 'हजारी दादा' के नाम पहचाने जाते थे। आपके एक बड़े भाई एवं दो बहनें थीं। आपने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की। 1930 की मन्दी के समय आपके परिवार को रुई में काफी घाटा (नुकसान) लगा, जिससे आपकी परिस्थिति खराब हो गई। आपका विवाह 1940 में हरदा में ही लक्ष्मीबाई जैन से हुआ। श्री जैन ने 1942 के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया, हरदा में 144 धारा लगी थी, उसको तोड़ा व 'वन्दे मातरम्' का नारा देते हुए गिरफ्तार हुए। आपको Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन 4 माह की सजा हुई जो होशंगाबाद की जेल में काटी। आपने जेल में ही कविता लिखनी शुरू की। जेल में दादा भाई नाईक, चम्पालाल सोंकल, महेशदत्त मिश्र, रामेश्वर अग्निभोज, मगनलाल जी कोठारी आपके साथ थे। आपकी कविताओं का संग्रह 'प्रणयकुमार' के नाम से छपा था। देश आजाद होने के बाद कुछ समय तक आपने कांग्रेस का काम किया बाद में 1954 से राजनीति छोड़ दी। 1972 में मध्य प्रदेश शासन ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया, जिसमें सभी को पेन्शन व जमीन दी गई, परन्तु आपने कोई पेन्शन व जमीन नहीं ली व कहते रहे कि - 'क्या हमने इसके लिये लड़ाई लड़ी थी, हमने तो मातृभूमि की रक्षा के लिए, आजादी के लिए लड़ी थी । ' सामाजिक व धार्मिक कार्यों में आप सदैव अग्रणी रहे। आप दिगम्बर जैन संस्था के न्यासी भी रहे बाद में कोषाध्यक्ष व मंत्री पद भी संभाला। समाज में आपकी काफी प्रतिष्ठा थी आपके सामने किसी को बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। प्रतिदिन मंदिर जाना आपका नियम था । आपका निधन दिनांक 24 मार्च 1988 को हार्ट अटैक हो जाने से हो गया। आपकी मृत्यु के पश्चात् शासन द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सैनानी पेंशन मिलने लगी जो आपकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मीबाई जैन को मिल रही है। श्रीमती लक्ष्मीबाई जैन भी धार्मिक रुचि सम्पन्न महिला हैं। श्रीमती जैन पेंशन में प्राप्त समस्त राशि विद्यार्थियों को दे देतीं हैं। (आ) - ( 1 ) म) प्र०) स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ 346 (2) स्व) स) हो, पृष्ठ-133 (3) हरदा और स्वतंत्रता संग्राम, पृष्ठ- 85 (4) पुत्र श्री महेन्द्रकुमार द्वारा प्रेषित परिचय श्री हुकुमचंद जैन जबलपुर (म0प्र0) निवासी तथा नागपुर प्रवासी श्री हुकुमचंद जैन, पुत्र - श्री गोरेलाल का जन्म 1919 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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