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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 375 होकर सक्रिय हुए तथा गिरफ्तार होकर जबलपुर आन्दोलन में सक्रिय होकर आपने अपने परिवार जेल में रहे। को चिन्ता नहीं की। इस सन्दर्भ में सहारनपुर __ आ- (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग-1, सन्दर्भ' में लिखा है- 'श्री हंसकुमार जैन इस जनपद पृष्ठ 114 (2) स्व। स) ज), पृष्ट - 186 के पहले व्यक्ति थे, जो अपनी पारिवारिक परिस्थितियों श्री स्वरूपचंद सिंघई का ध्यान न करते हुए, जुलूस निकालकर उसका सागर (म0प्र0) के श्री स्वरूपचंद सिंघई नेतृत्व करते हुए 11-8-1942 को गिरफ्तार हुए पुत्र-श्री झुत्रीलाल का जन्म 1921 में हआ। छात्र उस समय उनको कन्या कठिन रोग से आक्रान्त थी जीवन से ही आप राष्ट्रीय गतिविधियों में सक्रिय हो जो कुछ दिन पश्चात् ही स्वर्ग सिधार गई।' गये थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने आ-(1) () स) रा0 0 (2) स) स0, भाग-1, पृष्ठ-150, 163, 103 एवं 544 (3) उ0 प्र0 जै0 40, पृष्ठ-85 9 माह के कारावास की सजा भोगी। आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, श्री हंसराज कोठारी पृष्ठ-6) (2) आ) दी), पृष्ठ-82 ब्यावरा, जिला-राजगढ़ (म0 प्र0) के भाई हंसकुमार जैन श्री हंसराज कोठारी, पुत्र- श्री छोगमल का जन्म 1910 में हुआ। कोठारी जी ने प्रजामंडल द्वारा 'भारत नौजवान सभा' के सक्रिय कार्यकर्ता रहे चलाये गये आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग श्री हंसकुमार जैन, पुत्र- श्री झूम्मन लाल का जन्म लिया था। सहारनपुर (उ0प्र0) में 1912 के आसपास हुआ। आ-(1) 40 प्र) स्वा) से), भाग-5, पृष्ठ-120 आपके पिता स्वतंत्रता संग्राम में अनेक बार जेल गये। आपका पूरा परिवार ही आन्दोलन में सक्रिय श्री हजारीलाल जैन रहा। नृत्यकला विशारद हंसकुमार जी ने अपनी कटनी, जिला-जबलपुर (म0प्र0) के श्री हजारी कला का उपयोग भी जेल के कैदियों को प्रसन्न लाल जैन, पुत्र-श्री मूलचंद जैन का जन्म 1910 में करने और उनमें राष्ट्रीय भावना भरने में किया। हआ। आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की और प्रसिद्ध साहित्यकार एवं स्वाधीनता सेनानी श्री 1930 से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे, जंगल कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने हंसकुमार जी के __ सत्याग्रह में गिरफ्तार हुये और एक सप्ताह का संदर्भ में लिखा है- “17-18 साल की उम्र और कारावास भोगा। पिद्दी सा शरीर। 1930 में रुड़की छावनी में फौजों आ)-(D) म० प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-122 को भड़काने के अपराध में उन्हें 4 साल की सख्त कैद की सजा सुनाई गई तो जिले भर में सन्नाटा छा श्री हजारीलाल जैन 'मस्ते' गया, पर वे हंसते हुए अपनी बैरक में लौटे और उस 'मस्तेजी' उपनाम से विख्यात होशंगाबाद रात में इतना बढिया नाचे कि कैदी साथियों को वह (म0 प्र0) के श्री हजारीलाल जैन का जन्म 4 आज भी याद है। 1932 और 1942 में भी वे जेल दिसम्बर 1917 को हुआ। आजादी के आन्दोलन के गये और सदैव वहाँ का कठोर वातावरण उनकी दौरान आप एक सभा में भापण कर रहे थे। तभी वंशी की ध्वनि और घंघरुओं की झंकार से थिरकता लाठीचार्ज हुआ, आप गिरफ्तार कर लिये गये और 9) रहा। 'अरे भाई. रोते हो. तो जेल आते ही क्यों हो।' माह के कारावास की सजा आपको दी गई। यह उनकी खास उक्ति है।" आO-(1) स्व) स) हो, पृष्ठ-118 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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