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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड शिक्षण संस्थायें बंद कर दी गईं। हम लोग आन्दोलन को जगह- जगह ले जाने लगे। इलाहाबाद से चलकर मैं अपने अग्रज महेन्द्र कुमार मानव के साथ अमरपाटन आया, जहाँ हम लोगों ने जुलूस निकाला और कटरा में बने मन्दिर पर एकत्रित जनसभा में जोशीले भाषण दिये। जिसके परिणामस्वरूप हम दोनों भाइयों के नाम रीवां राज्य का वारन्ट जारी कर दिया गया। मानव जी को होशंगाबाद में गिरफ्तार किया जाकर 2 माह विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया। बाद में सैन्ट्रल जेल में करीब 8 माह बन्दी रहे, जब कि मैंने अनेक स्थानों में भूमिगत रहकर कार्य किया। ' आपके शब्दों - 'उस आजादी की जंग में जो लोग शहीद हो गये, वे भाग्यशाली थे और उनके लिये स्वर्ग के द्वार हमेशा-हमेशा के लिये खुल गये । लेकिन जो लोग उस आजादी की जंग में कुछ कदम भी साथ रहे, वे भी कम भाग्यशाली नहीं, क्योंकि उनकी कुर्बानियों का ही फल आज की पीढ़ी 'स्वाधीन भारत" के रूप में भोग रही है।' 19 दिसम्बर 1994 को आपका निधन हो गया। आ() -(1) आकाशवाणी छतरपुर से प्रकाशित वार्ता, (2) प0 जै) इ0, पृष्ट-388 ( 3 ) अनेक प्रमाण पत्र आदि (4) पुत्र श्री शैलेन्द्र द्वारा प्रेपित परिचया " श्री सुरेशचंद सिंघई देवरी, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी और कलकत्ता प्रवासी श्री सुरेशचंद सिंघई, पुत्र श्री - दुलीचंद सिंघई ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया, गिरफ्तार हुए और 25 सितम्बर 1942 से 11 अप्रैल 1943 तक का कारावास सागर जेल में काटा। बाद में आप कलकत्ता चले गये जहाँ जिनवाणी प्रचारक कार्यालय तथा जवाहर प्रिंटिंग प्रेस चलाया। आप प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री परमानन्द सिंघई के भतीजे थे। आ) - ( 1 ) म) प्र0 स्व० सै0 भाग 2, पृष्ठ-69 ( 2 ) धर्मपत्नी द्वारा प्रेषित परिचय | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 371 श्री सुहागमल जैन भोपाल (म0प्र0) के श्री सुहागमल जैन, पुत्र- श्री बालमुकुन्द का जन्म 1928 में हुआ। 1949 के भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन में आपने भाग लिया तथा 16 दिन के कारावास की सजा पाई। आ)- (1) 40 प्र0 स्व0 सं0 भाग-5, पृष्ठ 31 श्री सूरजचंद जैन जिस समय 'करो या मरो' का आह्वान किया गया था तथा पाटन, जिला- जबलपुर (म0प्र0) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन भी राष्ट्रीय युवकों में लोकप्रिय हो रहा था, तब युवक सूरजचंद शहपुरा शाखा के मुख्य शिक्षक थे। संघ के देशभक्ति पूर्ण गीतों ने आपको 1942 की जनक्रांति में कूद पड़ने की अदम्य प्रेरणा दी। स्वतंत्रता का मूल्य प्राण है, देखें कौन चुकाता है- देखें कौन सुमन शैय्या तज कण्टक पथ पर आता है। श्री सूरजचंद का जन्म मई 1923 को शहपुरा जिला - जबलपुर (म0प्र0) में श्री रूपचंद जैन के यहां हुआ था। 18 वर्ष की आयु में आप क्रांति के उन्मेष से पूर्ण, निर्भीक रूप से ब्रिटिश सत्ता को चूर-चूर करने की कामना से गांधी जी के आन्दोलन में कूद पड़े। For Private And Personal Use Only आप तोड़-फोड़ करने की तैयारी में लगे थे, किन्तु भाई गुलाबचंद एवं श्री हुल्लीराम के आकस्मिक रूप से गिरफ्तार कर लिये जाने से उक्त योजना असफल रही। फलतः आप अपने साथी श्री हुकुमचंद नामदेव के साथ पुलिस थाने पर स्वतंत्रता का झण्डा फहराने चल रड़े। जोश से भरे हुए अनेक नौजवानों की भीड़ पीछे-पीछे चल रही थी। अंग्रेजों का नाश
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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