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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 356 स्वतंत्रता संग्राम में जैन में मैंने भाषण दिया अतः रात्रि साढ़े ग्यारह बजे गिरफ्तार अब धर्ममार्ग अपनाया है। 1979 में दर्शन प्रतिमा कर लिया गया। रात ही में जेल में बंद कर दिया गया। ग्रहण की। 1983 में आचार्य प्रवर श्री 108 विद्यासागर दूसरे दिन श्री कामताप्रसाद जज (मजिस्ट्रेट) की जी महाराज से व्रत प्रतिमा ग्रहण कर ली। उसी का अदालत में पेश किया गया, जहाँ 4 माह की सुजा यथाशक्ति पालन कर रहा हूँ" सुना दी गई। __ श्री जैन के पिताजी आयुर्वेद के अच्छे ज्ञाता थे। 1940 में मंडला में मेरे जीवन में एक सम्प्रति आप भी आयुर्वेद चिकित्सा करते हैं। फीस अप्रत्याशित घटना दशहरे के अवसर पर घटित हुई। नहीं लेते। मात्र दवा के पैसे लेते हैं। दशहरे का जुलूस जब 'जय काली' का जय घोष करते आO-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-192 (2) प0 जै0 हुए जा रहा था तब एक मजिस्द से कल पत्थर फेंक ३०, पृष्ठ-233 (3) स्व0 प0 (4) दैनिक भास्कर, जबलपुर, 22 अगस्त 1997 गये। हिंदू-मुस्लिम दंगे की स्थिति बन गई। मैं उग्र भीड़ को समझाने का प्रयास कर रहा था। दंगा तो श्री श्यामलाल जैन 'सत्यार्थी' नहीं हो पाया किंतु मेरे व भाई शंकरलाल शिवहरे (जो 'सत्यार्थी' उपनाम से प्रसिद्ध श्री श्यामलाल जैन, उस दिन मण्डला से 10 किमी0 दूर रामनगर में थे) पुत्र-श्री जौहरीलाल ग्राम-लड़ावना, जिला-आगरा के विरुद्ध दंगा भड़काने का आरोप लगाया गया और (उ0प0) के मूल निवासी थे। बाद में आप पथवारी हम दोंनो को इस आधारहीन तथा झूठे अपराध के लिए (आगरा) आकर रहने लगे। अध्यापन जैसे पवित्र 4-4 माह का कठोर कारावास भोगना पड़ा। व्यवसाय से जुड़े सत्यार्थी जी की रुचि बचपन से ही 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में 12 अगस्त देश की आजादी की ओर थी। 1930-32 के आन्दोलनों 1942 को ही मेरी गिरफ्तारी हो गई। मेरा अनुज में आपने भाग लिया और छह माह का कारावास भोगा। अमीरचंद जैन फरार हो गया, क्योंकि उसकी गिरफ्तारी दुर्भाग्य देखिये कि इसी बीच आपकी पत्नी और युवा का भी वारण्ट था। हमारे यहाँ आजीविका का एक पुत्र का देहावसान हो गया, फिर भी आप विचलित मात्र साधन छोटा सा प्रिटिंग प्रेस था, ब्रिटिश सरकार नहीं हुए। 1942 के आन्दोलन में भी आपने जेल की द्वारा उस पर ताला लगा दिया गया। इस तरह परिवार यात्रा की थी। की रोजी-रोटी का एकमात्र साधन भी जाता रहा। आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) प० इ0, १0-142 उस समय परिवार में माता-पिता. छोटा भाई सगम (3) उ0 10 0 40. पृष्ठ-93 (4) गो0 अ0 ग्र), पृष्ठ 227 चंद उससे छोटी तीन बहिनें, मेरी पत्नी एवं ढेड़ श्री श्यामलाल पाण्डवीय साल का बच्चा था। तत्पश्चात् मैं 10 जनवरी 1944 मध्यभारत के प्रथम मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव को जबलपुर सेण्ट्रल जेल से रिहा किया गया। रहे यशस्वी लेखक, प्रसिद्ध जेल से रिहा होने के पश्चात् कठिन संघर्ष और प्रख्यात समाजसेवी, करते हुए मैंने प्रेस के कारोबार को सुदृढ़ किया। मैं श्री श्यामलाल पाण्डवीय का 1939 से 1948 तक जिला कांग्रेस कमेटी का प्रधानमंत्री रहा। व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय करीब 8 माह जन्म 14 दिसम्बर 1896 तक जिला कांग्रेस ऑफीसर इंचार्ज भी रहा। 1951 को मुरार (ग्वालियर) में कांग्रेस से अलग होकर पं0 द्वारका प्रसाद मिश्रा म0प्र0 में हुआ। आपके पिता का सहयोगी रहा। श्री शंकरलाल ग्वालियर For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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