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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 348 www.kobatirth.org उससे सैकड़ों नवयुवकों ने आजादी के आन्दोलन में लड़ने की प्रेरणा पाई। आपने 2 महाकाव्यों, 5 खण्डकाव्यों व 6 अन्य ग्रन्थों को लिखकर माँ वाग्देवी का श्रृंगार किया है । शताधिक कवितायें आपकी विभिन्न स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं। 26 संस्थाओं द्वारा आपको पुरस्कार/सम्मान / उपाधियाँ/ अभिनन्दन पत्र आदि प्रदान कर सम्मानित किया गया है। 1942 के आन्दोलन में आप क्रान्तिकारी बनकर उभरे। विदेशी वस्त्रों की होली जलाना, तार काटना आदि आपके प्रमुख कार्य थे । 'सहारनपुर संदर्भ' भाग-1 ( पृ-193) लिखता है-" 1942 के आन्दोलन में छात्र भी किसी से पीछे नहीं रहे। छात्रों को साधारणतया पुलिस गिरफ्तार नहीं करती थी। परन्तु एक बालक शान्तिस्वरूप को 13-8-1942 को टेलीफोन के तार काटते हुए डी0आई0आर0 में बन्दी बना लिया गया। उन्हें 14 अगस्त से 21 नवम्बर 42 तक विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया और बाद में 18 बेतों की सजा देकर छोड़ दिया गया।'' इसी तरह जैन संदेश, राष्ट्रीय अंक में वरिष्ठ साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने लिखा है "जैन समाज के यशस्वी तरुण कवि श्री शान्तिस्वरूप जैन 'कुसुम' 1942 में हमारे जिले के उन थोड़े तरुणों में थे, जिन्होंने आन्दोलन के स्थान में क्रान्ति का रास्ता पकड़ा। कुछ ही दिनों में वे पुलिस की आंखों में चढ़ गये और पकड़े गये, पर पुलिस प्रमाण न पा सकी और वह छोड़ दिये गये । " कुसुम 22 नवम्बर 1942 से 22 मार्च 1943 तक जी ने भूमिगत जीवन व्यतीत किया। जे0वी0 जैन कालेज सहारनपुर से आपका नाम काट दिया गया और फिर पढ़ने का क्रम ही टूट गया। स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपने जेल में अनेक राष्ट्रीय गीत भी लिखे। कुछ अंश प्रस्तुत हैं लो फिर जंजीरें बोल उठीं, लोहा लेने इन्सान चले, भारत के वीर जवान चले सन् सत्तावन की याद लिये, फिर से तकदीरें बोल उठीं। लो फिर... ★ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ★ * सत्य अहिंसा मन्त्र बताते, सत्याग्रह की सीख सिखाते, For Private And Personal Use Only युद्ध बाँकुरे झलक रहे हैं, मरना सौ बार ⭑ क्या तुम्हारे हाथों में पतवार । आ)- (1) जै० स० रा० अ० (2) स० स०, भाग-1, पृ-193 (3) अनेक रचनाएं (4) स्व0 प0 सिंघई शिखरचंद जैन सिंघई शिखरचंद जैन, पुत्र- श्री कुन्दनलाल का जन्म 3 जून 1912 को ललितपुर (उ0 प्र0) में हुआ। 1942 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी गिरफ्तारी के समय करो या मरो का नारा देशवासियों को दिया, तब शिखरचन्द जी का चुप बैठना कैसे संभव था । अतः सिंघई जी इस जन आंदोलन की धधकती आग में कूद पड़े। 28 अगस्त 1942 को धारा 144 का उल्लंघन कर जुलूस निकालने के खिलाफ उन्हें गिरफ्तार किया गया। जिसमें एक वर्ष का सश्रम कारावास एवं एक सौ रुपया अर्थदण्ड - वसूल न होने पर दो माह की सजा और दी गयी। आपको 5-4-43 को बी क्लास के बन्दी के रूप में जिला कारागार फैजाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया था।
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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