SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 334 - स्वतंत्रता संग्राम में जैन सकता है। फिर वह बेचारा वैसी ममता कहाँ से बहुत कम वेतन पर राजकुमार मिल में नौकरी करने लायेगा।' लगे। इन्हीं दिनों स्वाधीनता आन्दोलन के सन्दर्भ में ___ आ0- (1) स0 स0, भाग-1, पृष्ठ-189, 544 (2) वे कांग्रेस और प्रजामण्डल की गतिविधियों में भाग जै) स) रा0 अ0 (3) उ0 प्र0 जै0 40. पृष्ठ-86 (4) स्वाधीनता लेने लगे फलतः यह नौकरी भी छोडनी पड़ी जो आन्दोलन और मेरठ, पृष्ठ-371 उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत थी। प्रजामंडल में श्री लक्ष्मीलाल जैन संगठन की सर्वोच्च जिम्मेदारियों कर निर्वहन करने श्री लक्ष्मीलाल जैन का जन्म 1910 में गड़वेडा के बाद भी वे प्रचार से सदैव दूर रहे, कभी किसी (रायपुर) म0प्र0) में हुआ था। आपके पिता का नाम पद को नहीं स्वीकारा। प्रजामंडल की पत्रिका के अंकों श्री ज्ञानमल जैन था। 1942 का राष्ट्रीय आंदोलन, जो को गुपचुप साइक्लोस्टाइल करवाकर बंटवाने का कि गांव-गांव में फैल चुका था, गांधी जी के 'करो इन्तजाम लाभचंद जी ही करते थे। या मरो' नारे ने जनता को घर से बाहर निकलकर, युवावस्था में ही वे खादी प्रेमी बने। खादी की सड़क पर आंदोलन करने को प्रेरित कर दिया था। धोती, कुर्ता और सफेद टोपी, गौर वर्ण, स्वस्थ शरीर तब श्री लक्ष्मीलाल जैन भी सब कुछ भूलकर राष्ट्र और स्मित मुस्कान, यही उनका व्यक्तित्व था। दाढ़ी की सेवा में आगे आये और आंदोलन में सक्रिय हो नियमित बनाने का शौक उन्हें नहीं था, जो उनकी गये। आंदोलन में भाग लेने के कारण श्री जैन को 3 कर्मठता को प्रतिपादित करता है। माह 15 दिन का कारावास मिला था। ___ उन्होंने अपने लिए कभी विलासिता नहीं आ0- ( 1 ) मा0 प्र) स्व0 सै0, भाग-3, पृष्ठ-78 चाही। अपने जीवन के पचास वर्ष उन्होंने साइकिल पर दफ्तर जाते हुए गुजारे थे। मनोरंजन के नाम पर श्री लाजपतराय जैन उन्हें सिर्फ एक ही शौक था, ब्रिज खेलना, वह भी सहारनपुर (उ0प्र0) के मौहल्ला कायस्थान रात साढ़े नौ बजे तक। अपने अंतिम दिनों में वे परिवार निवासी श्री लापजतराय जैन को 26 मार्च 1932 को के यवा और नन्हें सदस्यों के साथ मंदिर जाया करते साइक्लोस्टाइल पेपर छापकर बांटने के अपराध में , गिरफ्तार कर तीन माह का दण्ड दिया गया था। 1931-34 के मध्य के उनके राजनैतिक आ0-(1) स) स), भाग-1, पृष्ठ-163 एवं 544 कार्यों के सन्दर्भ में प्रसिद्ध पत्रकार श्री नरेन्द्र तिवारी श्री बाबू लाभचंद छजलानी ने लिखा है'बाबूजी' उपनाम से विख्यात, चुंबकीय व्यक्तित्व 'स्वाधीनता संग्राम के दौरान हम लोगों की एक के धनी, श्री लाभचंद छजलानी का जन्म 31 जुलाई क्रांतिकारी टोली थी। भाई नारायणसिंह सपूत, 1909 को वाराणसी में हुआ। महावीरसिंह आदि उसमें अग्रणी थे। उस टोली में और आपके पिता श्री हरकचंद भी कई लोग शामिल थे। यह बातें 1931 से 1934 छजलानी जौहरी थे और हीरे के बीच की हैं। जवाहरात के मामले में वे भाई नारायणसिंह वैसे तो दूधिया ग्राम के थे, इन्दौर के होल्करों के परन्तु उन्होंने जूनी कसेरा वाखल में एक मकान किराए सलाहकार थे। लाभचंद जी पर ले रखा था। हम अक्सर उसी मकान में इकट्टे 1922 में इन्दौर आये और हुआ करते थे। बाबूजी (लाभचंद जी) से मेरी पहली For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy