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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 279 श्री जैन जिला एवं नगर कांग्रेस के पदाधिकारी के आधार पर नेमावर, जिला-देवास को सिद्धक्षेत्र के रहे हैं। रूप में विकसित करने के कार्य में सलंग्न हैं। आ0-(1) स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय जनजागरण में आ0- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृष्ठ-345 शाजापुर जिले का योगदान (टंकित शोध-प्रबन्ध, 1996) (2) स्व) स0 हो०, पृष्ठ-132 (3) हरदा और स्वतंत्रता संग्राम, पृष्ठ-79 (4) स्व) प) श्री माणकलाल जैन श्री माधवसिंह जैन 'संत' झाबुआ (म0प्र0) के श्री माणकलाल जैन, श्री माधवसिंह जैन का जन्म मंदसौर (म0 पुत्र-श्री गुलाबचंद जैन ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग प्र0) में 3 जून 1906 में हुआ था। आपके पिता श्री लिया। आजादी के बाद शासन ने प्रशस्ति पत्र प्रदान पन्नालाल जैन मंदसौर में ही एक साधारण व्यवसायी कर आपको सम्मानित किया है। थे। स्वतंत्रता आंदोलन में श्री जैन ने 1924 के आ0--(1) म0प्र0 स्व) से), भाग-4, पृष्ठ-144 लगभग प्रवेश किया। श्री जैन, जिन्हें कालान्तर में 'संत' कहा जाने लगा था श्री हरिभाऊ उपाध्याय से श्री माणकलाल जैन बहुत प्रभावित थे। उनके भाषणों से ही प्रभावित इन्दौर (म0प्र)) के श्री माणकलाल जैन, होकर श्री जैन आंदोलनकारियों के लिये महत्त्वपूर्ण पुत्र-श्री दीपचन्द का जन्म 1927 में हुआ। 1942 के आवश्कयता हो गये थे। 'जो काम किसी से न हो भारत छोड़ो आन्दोलन में दि) 11-10-42 से उसे माधव करेगा' ऐसी उक्ति उस समय प्रचलित 29-11-43 तक का कारावास आपने भोगा। थी। प्रचार साहित्य बांटना हो, दीवारों पर पोस्टर आ0-(1) म प्र) स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-36 चिपकाना हों, सूचनाएं लाना-ले जाना हों अथवा नारे लगाना हों, सब में श्री जैन सबसे आगे रहते थे। श्री माणिकचंद जैन पाटनी माधवसिंह जी कुछ समय राजस्थान भी रहे हरदा, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) के श्री माणिक और फिर बंगाल चले गये। कलकत्ता में रहकर चन्द जैन पाटनी, पुत्र-श्री बल्देव पाटनी का जन्म आपका सम्पर्क वहां के अनेक क्रांतिकारियों से 22 अक्टूबर 1922 को हुआ। हुआ। कलकत्ता उस समय क्रान्तिकारियों का प्रमुख पाटनी जी ने भारत छोड़ो केन्द्र था। इन्हें अनेक बार गिरफ्तार किया गया व आन्दोलन में भाग लिया और फिर कुछ दिनों बाद छोड़ भी दिया गया। नवभारत 14 अगस्त 1942 को टाइम्स, बम्बई के कार्यालय में भी आपने सेवा की गिरफ्तार कर होशंगाबाद जेल व बम्बई रहकर आंदोलन में भाग लेते रहे। आप में भेजे गये। कछ दिनों बाद एक सतर्क पत्रकार भी थे। जबलपर जेल भेज दिये गये। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आपने चार माह की सजा आपको कलकत्ता में गिरफ्तार कर लगभग 7 माह काटी। आपने शासकीय पेंशन लेने से इंकार कर कारावास में रखा गया। वहां से मुक्त होकर आप वापिस मंदसौर आ गये व जीवनपर्यन्त राष्ट्रीय चेतना दिया क्योंकि आपका विचार है कि-'हमने देशहित वा , के कार्य में लगे रहे। श्री जैन का देहावसान 1971 के लिये काम किया है, किसी लाभ के लिये नहीं।' में जावरा में हुआ। सम्प्रति आप निर्वाण कांड गाथा में उल्लिखित आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-217 - रावण के सुत आदि कुमार मुक्ति गये रेवा तटसार' (2) स्व0 स0 म0, पृष्ठ-50-51 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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