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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxii स्वतंत्रता संग्राम में जैन अन्दर एक लोभ बैठा था कि आजादी की आधी शताब्दी बीत जाने पर यह कार्य हो रहा है बाद में कोई करेगा? यह निश्चित नहीं। स्वतंत्रता की इन साक्षात् मूर्तियों की परम्परा भी समाप्तप्राय: है, फिर शायद ये स्मृतियां, ये अनुभव, ये घटनायें, यह इतिहास न मिले, अत: सरल भाषा में जितना जरूरी और आवश्यक था, वह हमने लिखा है। स्वतंत्रता सेनानियों के ये परिचय अलग-अलग समय, अलग-अलग तिथि तथा अलग-अलग आधार पर लिखे गये हैं अतः इनकी भाषा-शैली में अन्तर होना स्वाभाविक है। निवेदन है कि प्रत्येक परिचय को एक स्वतंत्र इकाई मानकर पढ़ा जाये। प्रामाणिकता प्रस्तुत ग्रन्थ में जो भी सामग्री दी है, उसकी प्रामाणिकता का विशेष ध्यान रखा है। स्वाधीनता आन्दोलन में जैन ही नहीं प्रत्येक सेनानी ने किसी लाभ के वशीभूत होकर नहीं, अपितु भारत माता को आजाद कराने की कर्तव्य-भावना से भाग लिया था। आजादी के बाद इसको भुनाने का जैन समाज के लोगों ने कभी प्रयत्न नहीं किया, न ही अपने नाम स्वाधीनता सेनानियों की सूची में जुड़वाने के प्रयत्न किये, अनेक ने तो सरकार द्वारा दी गई जमीन आदि को लेने से भी इन्कार कर दिया, फलतः अनेक जैन सेनानियों के नाम सरकारी पेंशन या अन्य सुविधा प्राप्त सूचियों में नहीं आ पाये। ऐसी दशा में उनकी पहचान करना और कठिन हो गया। ___ इस कार्य को करने के लिए हमने जैन समाज तथा उसके उपसम्प्रदायों के इतिहास ग्रन्थ देखे हैं, साथ ही विभिन्न सरकारी सूचियों, पुस्तकों, सन्दर्भो का आश्रय लिया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से भी प्रचर सामग्री प्राप्त हुई है। मध्यप्रदेश शासन द्वारा पांच खण्डों में प्रकाशित 'मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक' महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों की अनेक सूचियां भी हमें मिली हैं। ___23 जनवरी 1947 को प्रकाशित 'जैन सन्देश' का लगभग 100 पृष्ठीय राष्ट्रीय अंक इस विषय का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। इस अंक में उस समय वर्तमान और दिवंगत हो चुके लगभग पूरे भारत, विशेषतः हिन्दीभाषी क्षेत्रों के अनेक जैन स्वतंत्रता सेनानियों के परिचय हैं। जब देश आजाद भी नहीं हुआ था तब इस प्रकार के अंक का प्रकाशन सचमुच साहसपूर्ण कार्य था। उस समय आज की तरह पेंशनादि के लिए झूठे नामों को जुड़वाना भी सम्भव नहीं था। इस अंक से हमें प्रचुर सामग्री प्राप्त हुई है। 'उत्तर प्रदेश और जैनधर्म' में उत्तरप्रदेश के जैन सेनानियों की एक प्रामाणिक सूची डॉ0 ज्योति प्रसाद जैन ने 1974 में प्रकाशित की थी। सूची के अन्त में लिखा है-'जो विशेष रूप से उल्लेखनीय थे और जिनके विषय में निश्चित रूप से ज्ञात हो सका उन्हीं का उल्लेख ऊपर किया गया है।' श्री सुमनेश जोशी का 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी' ग्रन्थ राजस्थान के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। 850 पृष्ठीय इस ग्रन्थ में अनेक जैन सेनानियों का भी परिचय है। अनेक जैन शहीदों/सेनानियों पर स्वतंत्र पुस्तकें/अभिनन्दन ग्रन्थ/स्मृति ग्रन्थ/स्मारिकायें आदि प्रकाशित हुई हैं। दैनिक-पाक्षिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में भी सेनानियों पर काफी कुछ लिखा गया है। उनका संकलन कर उपयोग किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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