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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड अचल के गांव धनगुवाँ में 15 अगस्त 1924 को हुआ था। आपने बचपन से ही अभाव, और समस्याओं से जूझकर स्वयं ही अपना मार्ग प्रशस्त किया । आप जब गुरुदत्त दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, द्रोणगिरि में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तभी आपको प्रातः स्मरणीय सन्त श्री गणेश प्रसाद जी 'वर्णी' के सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वर्णी जी के पारस स्पर्श से धनगुवां का यह अनपढ़ बालक 'कुंदन' बनने गणेश प्रसाद वर्णी दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय, सागर, स्याद्वाद महाविद्यालय, बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय गया। जहां वर्णी जी के मार्गदर्शन से शास्त्री, साहित्याचार्य, काव्यतीर्थ एवं बी0ए0 आदि को उच्चतम परीक्षाएं उत्तीर्ण कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया और आर्थिक विपन्नता में भी स्व-अर्जित साधनों से अपना ज्ञान आगे बढ़ाते रहे। विद्यार्थी जी अल्पायु में ही दृढनिश्चयी, निस्पृही, लगनशील तथा मेघावी छात्र के रूप में विख्यात हो गए थे। विद्यार्थी जी ने गांवों में व्याप्त अभाव, गरीबी, छुआछूत, अन्याय, डाकुओं का आतंक और निरीह जनता का शोषण निकट से देखा था, अतः यहां की जनता को खुशहाल, आत्मनिर्भर एवं शोषणमुक्त बनाने की जो आग अध्ययनकाल से उनके अन्तर्मन में सुलग रही थी, उसे साकार रूप देने की प्रतिज्ञा की। जैसे ही 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का बिगुल बजा, विद्यार्थी जी अपनी परीक्षा छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला में कूद पड़े और विदेशी शासन की बेड़ियो को तोड़ने के लिए जनमानस तैयार करने में लग गए। उस समय गांव की जनता से ब्रिटिश सरकार अवैध एवं अनुचित कर वसूली करती थी। आपने इस कर का जमकर विरोध किया एवं ब्रिटिश सरकार से टक्कर लेने हेतु ग्रामवासियों को उकसाया। फलस्वरूप उन्हें 'राजद्रोही' एवं 'राजविरोधी' मानकर गांव छोड़कर जाने का आदेश मिला। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 201 ग्राम निष्कासन की इस कार्यवाही से उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को हीरापुर ( जिला - सागर ) में रहकर घोर संकट का सामना करना पड़ा। विद्यार्थी जी यहाँ भी शान्त न रहे और राजनैतिक गतिविधि यों में लग जाने के कारण पुलिस द्वारा प्रताड़ित होते रहे, पुलिस लाठी चार्ज में हाथ टूटा, लेकिन उत्साह फिर भी कम न हुआ और न ही पुलिस की पकड़ में आसानी से आए । अगस्त 1942 से अक्टूबर 1943 तक विद्यार्थी जी ने भूमिगत रहकर मुक्ति आंदोलन में सक्रिय कार्य किया एवं गुपचुप ढंग से जनसमूह को ब्रिटिश शासन के अत्याचार न सहने के लिये उत्तेजक और भड़काने वाले ओजस्वी भाषण देते रहे। अपनी नई सूझबूझ से मातृभूमि पर मर मिटने का संदेश चारों ओर फैलाते रहे, जिससे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष का वातावरण निर्मित हुआ। आपने जेल यातनाएं सहीं, लेकिन देशसेवा और देशभक्ति से विमुख नहीं हुए । 4 1945 में जब नेताजी सुभाष चंद बोस की 'आजाद हिन्द सेना' के सेनानी, स्वतंत्रता के पुजारी, देशभक्त सहगल, ढिल्लन, शाहनबाज आदि को ब्रिटिश सरकार ने लाल किले में बंद कर दिया था, तब सभी देशवासी तिलमिला उठे। विद्यार्थी जी से भी शान्त न बैठा गया और उन्होंने 'जैन भ्रातृसंघ' जबलपुर में जाकर सभाएं कीं। देश की रक्षा हेतु चन्दा इकट्ठा कर 'आजाद हिन्द फौज' के सेनानियों के लिए भेजा। उस समय जबलपुर की जैन समाज ने बनारस से अध्ययन छोड़कर आये नरेन्द्र जी को सम्मानित किया था। स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर 15 अगस्त 1973 को मध्यप्रदेश शासन ने आपको 'प्रशस्ति पत्र' भेंटकर सम्मानित किया था। विद्यार्थी जी की कर्मठता, निस्वार्थ सेवाओं एवं देशप्रेम से प्रभावित होकर कांग्रेस ने 1954 के For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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