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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड आन्दोलन' आरम्भ किया और अंग्रेजों के खिलाफ जनता में आग फैलाते रहे। कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए कुछ समय बाद नरेन्द्र जी पुनः मेरठ लौट आये। मेरठ में पुराने साथियों की टोली फिर जुड़ने लगी। किन्तु आर्थिक कठिनाईयों के कारण छात्रों को पुनर्गठित करने की समस्या और स्वयं अपना खर्चा उठाने की समस्या ने नरेन्द्र भाई को चिन्तित कर दिया। अन्ततः प्रयास करने पर उनको एक बैंक में नौकरी मिल गई। बैंक से मिलने वाले वेतन का अधिकांश भाग तो युवक साथियों के संगठन पर व्यय हो जाता था और इधर होटल वालों का उधार बढ़ता रहता । इसी प्रकार जीवन चक्र चलता रहा। नरेन्द्र भाई दिन में बैंक की नौकरी करते और सुबह शाम कांग्रेस व स्वतंत्रता आंदोलन के चक्कर में लगे रहते। 1946 में युवकों की एक बैठक के सम्बन्ध में नरेन्द्र भाई देहरादून आये ! यहां आकर नरेन्द्र भाई ने यहीं रहने का निश्चय किया, क्योंकि वह बैंक की नौकरी से भी परेशान थे और बैंक वाले इनकी क्रांतिकारी गतिविधियों से। 1946 में ही नरेन्द्र जी देहरादून शिफ्ट कर गये। चूँकि विवाह के बाद जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, विशेष रूप से तब जबकि परिवार बढ़ने लगे। इसी कारण उन्होंने अपना छोटा सा व्यापार शुरू कर दिया, किन्तु राजनैतिक और सामाजिक कार्य यहां भी चालू रहा। अच्छा वक्ता और परिश्रमी होने के नाते अल्प समय में ही वे यहां भी लोकप्रिय हो गये और अपने जन-सेवी कार्यो के कारण सम्मान प्राप्त करने लगे। 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष का विभाजन हुआ और देश आजाद हो गया। देहरादून में हिन्दु-मुस्लिम फिसाद न बढ़े इसलिए नरेन्द्र जी जगह-जगह स्थिति का काबू में रखने के लिए प्रयास करते रहे। इधर पाकिस्तान से शरणार्थी भाई बहुत बड़ी संख्या में भारत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 199 के विभिन्न स्थानों पर आकर बस गये। देहरादून आने वाले शरणार्थियों की संख्या बहुत अधिक थी, नरेंद्र जी ने शरणार्थियों की कठिनाई को देखते हुए तेजी से दौड़धूप शुरू की और नगर के विभिन्न लोगों को एकत्रित कर सहायता कार्य प्रारम्भ कर दिया। अपने व्यापार को छोड़कर वे जन-सेवा में जुट गये। उनकी लगन, परिश्रम और अटूट सेवा को देखते हुए शासन ने इनको देहरादून में शरणार्थी सहायता और पुनर्वास समिति का मन्त्री और स्पेशल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। नरेन्द्र भाई ने जितनी लगन और तपस्या के साथ पुनर्वा के लिए प्रयास किया, वह आज भी तत्कालीन शरणार्थी भाईयों के हृदय में है। 3 जनवरी 1959 को भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी0वी0गिरी ने रेडक्रास में महत्त्वपूर्ण सेवाओं के लिए नरेन्द्र भाई जैसे मित्र की बहुत प्रशंसा की थी। समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से नरेन्द्र जी निरन्तर महत्त्वपूर्ण आयोजन करते रहे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये। राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में काफी बड़ी धनराशि एकत्रित कराने में उन्होंने अथक परिश्रम किया। 1968 में उ0प्र0 सरकार द्वारा नरेन्द्र जी को गैर सरकारी जेल निरीक्षक नियुक्त किया गया। 1968 में ही उ0प्र0 के राज्यपाल महोदय ने इन्हें जिला स्वास्थ्य सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया। 23 अक्तूबर 1972 को उ0प्र0 स्काउट्स एवं गाईड के अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय आयुक्त पद पर नरेन्द्र भाई की नियुक्ति हुई जो कि काफी गरिमा का विषय थी। 1973 में नरेन्द्र जी उ0प्र0 अपराध निरोधक समिति के चेयरमैन चुने गये। माननीय राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अहमद ने 6-12-66 को राष्ट्र का स्काउटिंग का सर्वोच्च पदक Silver Elephant प्रदान किया एवं 23 - 2 - 78 को कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री वी0डी0 जत्ती ने नरेन्द्र भाई को उद्योग पत्र प्रदान किया । For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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