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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्वतंत्रता संग्राम में जैन www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXV आशीर्वचन तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने इस कर्मभूमि रूप युग का प्रारम्भ करते हुए असि, मषि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प इन छह कर्मों का उपदेश दिया था। उन्होंने ही काशी, कोसल, कलिंग, वंग, करहाटक, कर्नाटक, चोल, केरल, मालव, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र वनवास, द्रविड, आन्ध्र काम्बोज, केकय, शूरसेन, विदर्भ मगध, दशार्ण आदि जनपदों की व्यवस्था कर हा ! मा ! और धिक् ! इन तीन दण्डों का विधान किया था। ब्राह्मी को सर्वप्रथम लिपि का ज्ञान देने के कारण आज भी 'विश्व की मूल लिपि ब्राह्मी है' ऐसा भाषा वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। भगवान् ऋषभदेव का मार्कण्डेय, कूर्म, वाराह, ब्रह्माण्ड, विष्णु, स्कन्ध आदि पुराणों के साथ श्रीमद् भागवत के पंचम स्कन्ध में विस्तार से वर्णन हुआ है। कहा गया है कि -' नाभिराय और मरुदेवी के पुत्र महायोगी ऋषभदेव हुए। उनके सौ पुत्र थे, जिनमें भरत सबसे ज्येष्ठ थे, उन्हीं भरत के नाम पर यह देश भारतवर्ष कहलाता है। ' बाहुबली द्वारा अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए भरत से लड़ा गया युद्ध इस युग का प्रथम युद्ध कहा जाता है परन्तु यह युद्ध अहिंसक था । अहिंसक युद्ध, जिसकी अवधारणा अनेकान्तवादी जैनधर्म की देन है उसकी आज भी महती आवश्यकता है। आज हमारे देश में जो गणतंत्र /लोकतंत्र - व्यवस्था है, वह भगवान् महावीर के काल में भी थी। अनेक जैन राजा, मंत्री, दीवान, सेनापति, कोषाध्यक्ष आदि हुए, जिन्होंने भारत के राजनैतिक विकास में अपना महान् योगदान दिया था। हमारा देश प्राचीन काल से ही सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है, जो हमारी समृद्धि और विपुल प्राकृतिक सम्पदा का सूचक है। इसी समृद्धि के कारण विदेशी आक्रान्ता यहाँ आये और उन्होंने हमारे देश को खूब लूटा - खसोटा | 'ईस्ट इण्डिया कम्पनी' ने तो अपना ऐसा विस्तार किया कि अधिकांश भारत को अपने अधीन कर लिया। आजादी के लिए अनेक छोटे-मोटे प्रयास होते रहे किन्तु 1857 में एक संगठित क्रान्ति हुई, जिसकी अगुआ झॉसी की रानी लक्ष्मीबाई बनी। 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। ' के रूप में उनकी यशोगाथा आज भी जन-जन में गाई जाती है। महारानी लक्ष्मीबाई को तो आज सभी जानते हैं, किन्तु आर्थिक संघर्ष से भी जूझ रही लक्ष्मीबाई को खजाना खोलकर सहायता करने वाले ग्वालियर नरेश के खजांची अमर शहीद अमर चंद बांठिया को शायद ही कोई जानता हो । इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि किस प्रकार फांसी देने के बाद तीन दिन तक उनका शव ग्वालियर के सर्राफा बाजार के नीम पर लटकाये रखा गया था। 1857 की ही क्रान्ति में बहादुर शाह जफर के मित्र लाला हुकुमचंद जैन, हांसी व उनके भतीजे फकीरचंद जैन को उन्हीं की कोठी के आगे फांसी पर लटका दिया गया था। For Private And Personal Use Only जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है । किन्तु राष्ट्र के सम्मान पर जब भी आंच आई जैन-धर्मावलम्बी कभी पीछे नहीं रहे। भारत की आजादी के आन्दोलन में लगभग 20 जैन शहीदों ने अपना बलिदान देकर आजादी के
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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