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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 152 स्वतंत्रता संग्राम में जैन की आठ मार्च को सरकार ने श्री गोर्धनदास को घर करते देखे जाते हैं। अनेक धार्मिक आयोजन आपकी दबोचा। आगरा के केन्द्रीय कारावास में जब उन्होंने ओर से हुए है। अनेक बार आपका सम्मान राज्य/नगर प्रवेश किया तो बारह ताला बैरकों में उनकी गिरफ्तारी की ओर से हुआ है। हाल ही में अक्टूबर 1996 में का समाचार बिजली की तरह फैल गया।........ उनकी 'आगरा दि) जैन परिषद्' और 'श्री दि) जैन शिक्षा गिरफ्तारी का पता चलते ही सैकड़ों की संख्या में भीड समिति. आगरा' की ओर से एक वहत अभिनन्दन कोतवाली के दरवाजे पर जमा हो गई।.........आगरा ग्रन्थ आपको भेंट किया गया है। के केन्द्रीय कारागार में अनेक क्रान्तिकारी भी थे। श्री आगे आने वाली पीढी से आप क्या कहना जैन सहित दर्जनों बन्धुओं के गले में पाँचवें कोलम चाहेंगे'। मेरे यह कहने पर आपने कहा कि 'मैं तीन का प्रश्न-चिह्न लगाकर पट्टा लटका दिया गया था। सत्र नई पीढी को अपने अनुभवों से देना चाहूँगायह गर्म अफवाह फैला दी गई थी कि जापानी आक्रमण (1) दृढ़ संकल्पवान व्यक्ति के मार्ग की बाधायें के समय कांग्रेस जनों ने विद्रोह किया है। जिनके गले । स्वयमेव दूर होती रहती हैं। (2) अपने धर्म और इष्ट में तौक डाल दिया गया है, उन्हें शीघ्र ही लाहौर के है के प्रति अटूट आस्था सभी विपत्तियों को दूर करती किले में (ले) जाकर गोली मार दी जायेगी।" __ है। (3) देश और समाज की सेवा ऐसा कार्य है, जिसमें (गो) अ) ग्र), पृ0-155) मनुष्य को विरोध और सहयोग प्राप्त होते हैं। समाजसेवी श्री जैन धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में को विरोध से न घबराते हुए सहयोगियों से सहयोग पटेव अग्रणी रहे हैं वे मनिराजों के परम भक्त हैं। साला सदैव खादी के वस्त्रों को उपयोग करते हैं और आ0-(1) गो) अ) ग्र0, (2) जै) स) रा0 अ0), रेशम चमडे जैसी हिंसक वस्तुओं के पूर्णत: त्यागी (3) प) इ., पृ0-141 (4) साक्षात्कार 25-9-1996 हैं। आप 'आगरा होलसोल कन्ज्यूमर्स' के प्रबन्धक, श्री गोविन्ददास जैन 'दि) जैन शिक्षा समिति', आगरा के 20 वर्ष से महामंत्री 'आगरा कालेज' व 'नेहरू स्मारक' के ट्रस्टी आदि श्री गोविन्ददास जैन का जन्म 8 -11-1909 को पदों पर रहे हैं। पाली, जिला-ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके जैन पत्रकारिता से आप आरम्भ से ही घनिष्ठ रूप पिता का नाम श्री फूलचंद से जुड़े रहे हैं। आप 'पल्लीवाल जैन ' वे था। आप प्रसिद्ध जैन कवि सम्पादक/प्रकाशक, 'जैनदर्शन' के प्रबन्धकर्ता, 'दिगम्बर श्री हरिप्रसाद 'हरि' के बड़े जैन' के सम्पादक आदि पदों पर रहे हैं। 1963 में भाई हैं। आपने 'अमर जगत' नाम से अपना स्वयं का पत्र श्री रघुनाथ विनायक निकाला जो आज भी आपके पुत्र/पौत्र चला रहे हैं। | धुलेकर से प्रेरणा पाकर जै0स0रा0अ0 के अनुसार “1942 के आन्दोलन में आपने क्रान्ति स्थल पाली 'पल्लीवाल जैन' पत्र, प्रेस बन्द होने से बन्द हो गया के गौरव को बनाए रखा। 1930 में विदेशी वस्त्रों का था। 1947 तक सरकार ने उसे पुन: प्रकाशन की बहिष्कार किया और जल-विहार (एक जैन समारोह) अनुमति नहीं दी थी।" के दिन पाली की गली-गली में घूमकर पिकेटिंग ___ जन्मपर्यन्त जिन-पूजा और स्वाध्याय का नियम की। अंग्रेज सरकार के स्थानीय चाटुकारों के आतंक लेने वाले श्री जैन 83 वर्ष की उम्र में भी नित्य पूजा के प्रति जनता में संघर्ष की ज्वाला फूंकी। 1936 के For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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