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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 139 प्रचारक थे। खादी प्रचार को ही माध्यम बनाकर वे आ0-(1) म0 प्र0 स्व) सै), भाग-1, पृ0-38 राष्ट्रीय कार्यों में सम्मिलित हुए, खादी का ही व्यापार । (2) स्व) स) ज), पृ.)-92 (3) प) जै) इ०, पृ)- 420 (4) जबलपुर गजरथ स्मारिका, 1993, पृ0-46 (5) सिंघई किया, इसलिए 'खादी वाले' कहलाने लगे। रतनचंद जी द्वारा प्रेषित परिचय। दादा जी का जन्म 1907 में जबलपुर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री छबलाल था। 1942 के भारत श्री खूबचंद जैन 'पुष्प' छोड़ो आंदोलन में भूमिगत कार्यकर्ताओं से सम्पर्क रहा 'पुष्प' उपनाम धारक श्री खूबचंद जैन का जन्म, वि0स0 1981 (सन् 1924) में पिपरई और उनकी हर तरह से सहायता आपने की तथा (ललितपुर) उ0प्र0 में श्री आन्दालन को उग्र बनाये रखने के लिए प्रेरक परचे खुशालचंद जी मोदी के यहाँ छपवाकर वितरित किये। भमिगत रहे श्री सत्येन्द्र मिश्र हुआ। कम उम्र में ही आप की सलाह पर, छोटे फुहारे पर निषेधाज्ञा भंग करके राष्ट्रभावना से युक्त कवितायें सभा की अध्यक्षता कर उसे संबोधित करते हुए आप लिखने लगे। आप कविताओं पकड़े गये। पुलिस द्वारा शारीरिक यातनायें दी गईं तथा को सुना- सुनाकर देशप्रेम अर्थदण्ड सहित एक वर्ष की सजा हुई। के प्रति लोगों की भावनाओं ___ 35 वर्ष के युवा खूबचंद ने हार नहीं मानी को उभारते हुये ललितपुर में और कहा-'अर्थदण्ड नहीं दंगा चाहे जितनी भी यातनायें बंदी बना लिये गये। 1942 में आपको दफा 144 सहनी पड़ें'. फिर क्या था? अर्थदण्ड वसलने के लिए तोड़ने एवं विद्रोही कविता पाठ के कारण 6 माह इनकी दुकान भी कुर्क कर ली गई। की कठोर सजा तथा 500/- 'जुर्माना हुआ। जुर्माना आजादी के बाद आप कांग्रेस के अनन्य भक्त अदा न करने पर 6 माह की और कठोर सजा भोगनी पड़ी। अनेक सत्याग्रहों में भी आपने भाग रहे। धार्मिक और सामाजिक कार्यों में योगदान करना लिया। वर्तमान दशा पर आपका कहना है--- आपका स्वभाव था। जबलपुर के प्रसिद्ध जैन तीर्थ 'गांव भटक गये, पांव बहक गये, 'पिसनहारी की मढ़िया' की पहाड़ी पर पत्थरों की कहीं छांव विश्राम नहीं है। बड़ी-बड़ी चट्टानों को खुद हटवाकर मैदान बनवाया, बापू तेरे स्वप्नों का, अब कोई सेवाग्राम नहीं है।।' इसीलिए आप 'शिलाचार्य' कहलाने लगे, उस मैदान 'दिशाहीन हैं न्यायमार्ग सब, में आपने एक चौबीसी का भी निर्माण कराया तथा अपनापन वीरान हो गया। तब चालीस हजार रुपये दान में दिये थे। आपका किसे पुकारूँ, कौन सुनेगा, हर राही अनजान हो गया।।' निधन 1990 में हो गया। 'बापू तेरी अवधपुरी में, अपने कुटुम्बियों की आर्थिक सहायता भी आप अब तो कोई राम नहीं है। करते थे। मढिया जी में व्रती आश्रम, भेड़ाघाट जैन बापू तेरे स्वप्नों का, मंदिर का जीर्णोद्धार, नन्दीश्वर द्वीप रचना आदि में अब कोई सेवाग्राम नहीं है।।' आपका भारी योगदान रहा। आपके उत्तराधिकारी सुपुत्र सम्प्रति आप मण्डी बामोरा (सागर) म0प्र0 में श्री राजेन्द्र कुमार जबलपुर में अब भी 'महाकौशल रह रह है। आ).. (1) जै) स) रा) 0 (2) () नी), पृ0-40 खादी भंडार' चलाते हैं। (3) स्व) : For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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