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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 125 विश्वविद्यालय में उन्होंने अध्ययन ही किया। अमरता के पात्रों को नया प्राण देती है।' वे निरन्तर 'वैद्यक' की शिक्षा अवश्य ग्रहण की और 1932 ऐसे पंथ को ही शोधते रहे, जिससे आदमी को में स्वयं की जैन फार्मेसी में चिकित्सा कार्य करके अमरत्व मिल जाये। जैनमित्र, प्रदीप, जैन महिलादर्श, दवाओं का निर्माण और विक्रय करते रहे। उच्च आदर्श जैन चरितमाला आदि अनेक पत्रों के संपादन शिक्षा के लिये रामपुर से बाहर इसीलिए न जा सके से शशि जी अनेक वर्षों तक जुड़े रहे। कि अल्पायु (4 वर्ष) में आपको पिता का वियोग शशि जी ने जिन दिनों यौवन की देहरी पर हुआ और एक विषम आर्थिक संकट के संक्रमण पांव रखा तो उन्होंने देखा 'देश अंग्रेजों से पराधीन काल से आपका गुजरना पड़ा। परन्तु संघर्षा ने है. हमें स्वतंत्र बोलने-कहने का अधिकार नहीं।' आपकी कवित्व शक्ति को स्वर तथा प्राण दिये और आजादी के लिए पूरे देश में आन्दोलन चल रहा था। !! वर्ष की अवस्था से आप कवितायें रचने लगे। हजारों नौनिहालों के साथ शशि जी भी आजादी की शशि जी ने 1926 के आसपास से प्रौढ़ काव्य लड़ाई में कूद पड़े। अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद रचना प्रारंभ की। कविता आपके लिये कल्पना लोक से उनकी भेंट हई, 1930 में एक अंग्रेज एस0 पी0 की वस्तु नहीं थी बल्कि इसी धरती से जन्म लेने के ऊपर बम फेंकने के अपराध में शशि जी । वर्ष वाली सौरभमय चेतना थी, काव्य प्रणयन मनोविनोद-हेतु रावलपिंडी व कश्मीर जेल में रहे। जेल में आपको नहीं था बल्कि राष्ट्र और राष्ट्रीय विकास का हेतु कडी यातनायें सहनी पड़ी। था। उनकी कविता का आदर्श था शशि जी गांधी जी के व्यक्तित्व से सर्वाधिक 'मैं मानव हूं मानवता को, प्रभावित हुए, यह प्रभाव उनके समग्र जीवन में देखा मानूंगा महान् वरदान। जा सकता है। सत्य, अहिंसा, न्याय, जीव दया और आजीवन सम्मुख रखूगा, स्वाभिमान के प्रति शशि जी जीवन भर सजग रहे। मानव का आर्दश महान्।।' कड़वी होने पर भी सच बात कहने में कभी हिचक उन्होंने इस आदर्श का जीवन भर पालन नहीं दिखाई। शशि जी की रचनायें गांधी जी से किया। धर्म, जाति और देश की संकीर्णता से उठकर प्रभावित थीं। जैसेवे जीवन भर यही बात कहते रहे। 'बड़े-बड़े अरमानों से, यह आजादी आई। । उनकी रचना 'हृदय की आग' (रचनाओं का बड़े-बड़े बलिदानों से, यह स्वतंत्रता पाई।। संग्रह) बर्बर अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई। यह कवि गांधी जी का स्वप्न भला, साकार कहां हो पाया का प्रथम पुस्तकाकार प्रकाशन था। आगे चलकर अब उसमें भी घाटा है जो पाया कमा कमाया।।' 'कलम', 'मेरी आराधना', 'खराद', 'मुर्दा अजायब आपका उद्देश्य शिक्षा का प्रसार रहा। इस उद्देश्य घर', 'देवगढ़ दर्शन', 'जैन समाज दर्पण', 'कविता हेतु आपने रामपुर में जैन इंटर कॉलेज की स्थापना में कुंज', 'पांखुरिया' (कविता संग्रह), 'अहिक्षेत्र बड़ा हाथ बंटाया तथा जैन लाइब्रेरी की स्थापना पार्श्वनाथ-शौरीपुर वटेश्वर पूजन' आदि लगभग करायी। 1940 में रामपुर में हिन्दी के प्रचारार्थ 22 जैन एवं जैनेतर पुस्तकें समय-समय पर प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य गोष्ठी' की स्थापना आपने की थी। हुईं। शशि जी की निश्चित मान्यता थी- 'मृत्यु जीवन पर्यन्त आप पुस्तकालय एवं इंटर कॉलेज के For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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