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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xvii स्वतंत्रता संग्राम में जैन आचार्य शान्तिसागर (छाणी) और उनकी परम्परा बीसवीं सदी में दिगम्बर जैन मुनि परम्परा कुछ अवरूद्ध सी हो गई थी, विशेषतः उत्तर भारत में। शास्त्रों में मुनि-महाराजों के जिस स्वरूप का अध्ययन करते थे, उसका दर्शन असम्भव सा था। इस असम्भव को दो महान आचार्यों ने सम्भव बनाया, दोनों सूर्यों का उदय लगभग समकालिक हुआ, जिनकी परम्परा से आज हम मुनिराजों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं और अपने मनुष्य जन्म को ध्य मानते हैं। ये दो आचार्य हैं चारित्रचक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) और प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी)। कैसा संयोग है कि दोनों ही शान्ति के सागर हैं। दोनों ही आचार्यों ने भारतभर में मुनि धर्म व मुनि परम्परा को वृद्धिगत किया। दोनों आचार्यों में परस्पर में अत्यधिक मेल था, यहाँ तक कि ब्यावर (राजस्थान) में दोनों का ससंघ एक साथ चातुर्मास हुआ था। प्रशान्तमूर्ति आचार्य शान्ति सागर जी का जन्म कार्तिक बदी एकादशी वि•स• 1945 (सन् 1888) को ग्राम छाणी जिला उदयपुर (राजस्थान) में हुआ था, पर सम्पूर्ण भारत में परिभ्रमण कर भव्य जीवों को उपदेश देते हुए सम्पूर्ण भारतवर्ष, विशेषतः उत्तर भारत को इन्होंने अपना भ्रमण क्षेत्र बनाया। उनके बचपन का नाम केवलदास था, जिसे उन्होंने वास्तव में अन्वयार्थक (केवल अद्वितीय, अनोखा, अकेला) बना दिया। वि•स• 1979 (सन् 1922) में गढ़ी, जिला बाँसवाड़ा (राजस्थान) में क्षुल्लक दीक्षा एवं भाद्र शुक्ला 14 संवत 1980 (सन् 1923) सागवाड़ा (राजस्थान) में मुनि दीक्षा तदुपरान्त वि•स• 1983 (सन् 1926) में गिरीडीह (बिहार प्रान्त) में आचार्य पद प्राप्त किया। दीक्षोपरान्त आचार्य महाराज ने अनेकत बिहार किया। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। मृत्यु के बाद छाती पीटने की प्रथा, दहेज प्रथा, बलि प्रथा आदि का उन्होंने डटकर विरोध किया। छाणी के जमींदार ने तो उनके अहिंसा व्याख्यान से प्रभावित होकर अपने राज्य में सदैव के लिए हिंसा का निषेध करा दिया था और अहिंसा धर्म अंगीकार कर लिया था। आचार्य पर घोर उपसर्ग हुए, जिन्हें उन्होंने समताभाव से सहा। उन्होंने 'मूलाराधना', 'आगमदर्पण', 'शान्तिशतक', 'शान्ती सुधसागर' आदि ग्रन्थों का संकलन/प्रणयन किया, जिन्हें समाज ने प्रकाशित कराया, जिससे आज हमारी श्रुत परम्परा सुरक्षित और वृद्धिगत है। ज्येष्ठ बदी दशमी वि.स. 2001 (17 मई सन् 1944) सागवाड़ा (राजस्थान) में आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का समाधिमरण हुआ। इनके अनेक शिष्य हुए, जिनमें आचार्य सूर्यसागर जी बहुश्रुत विद्वान थे। आचार्य सूर्यसागर जी का जन्म कार्तिक शुक्ला नवमी वि.स. 1940 (सन् 1883) में प्रेमसर, जिला ग्वालियर (म०प्र०) में हुआ था। वि•स• 1981 (सन् 1924) में ऐलक दीक्षा इन्दौर में, तत्पश्चात 51 दिन बाद मुनि दीक्षा हाट For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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