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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड इसी वातावरण के आस-पास कुछ मनचलों ने तत्काल उक्त मजाकिया समस्यापूर्ति करने को मजबूर कर दिया। हृदय के भावों को जो आग्रह की हवा लगी तो भड़क उठे और उक्त पंक्तियाँ मुँह से निकल पड़ीं। ★ सेठी जी प्रखर देशभक्त होने के साथ-साथ उग्र समाज सुधारक भी थे। केवल व्याख्यान देकर या लेख लिखकर उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं होती थी, वे अपने प्रत्येक विचार को साकार देखना चाहते थे जयपुर और इन्दौर के गुरुकुल इसके उदारहण हैं। सेठी जी हरिजन मंदिर प्रवेश के समर्थक थे। ★ ★ ★ एक दिन सेठी जी और गोयलीय जी साथ सो रहे थे, प्रातः उठकर गोयलीय जी ने जब सेठी जी को नहीं पाया तो बड़े उद्विग्न हुए । तीन चार दिन बाद सेठी जी लौटकर आये तो गोयलीय जी ने कहाआप भी खूब हैं। कोई मरे या जिए आपको क्या ?' 4 सेठी जी ने हंसकर कहा- 'पहले पूरी बात तो सुनो' फिर उन्होंने कहना प्रारम्भ किया- ( उस दिन ) 'सुबह बाहर जाकर जो अखबार पढ़ा तो मेरे हाथों के तोते उड़ गये। तुमने भी चन्द्रशेखर आजाद का अजमेर में गिरफ्तार होने का संवाद पढ़ा होगा। संवाद क्या था, मेरे लिए तो मृत्यु संदेश था। आजाद को मैंने ही एक गुप्त स्थान पर ठहराया हुआ था । उसका मेरे यहाँ से गिरफ्तार हो जाने का अर्थ मेरी नैतिक मृत्यु थी, मेरी सारी तपस्या निष्फल हो जाती ! दुनियाँ क्या कहती कि सेठी भी उसकी सुरक्षा का यथोचित प्रबन्ध न कर सका।' 'बस इसी न्यूज को पढ़कर मैं तुमको बगैर सूचित किये ही छद्म रूप में वास्तविक बात जाँचने को अजमेर पहुँचा। शुक्र है कि उसको सही सलामत पाया। पुलिस ने उसके धोखे किसी और को मेरे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 109 यहाँ से पकड़ लिया था। अब उसको स्थानान्तर करके आया हूँ।' ⭑ ★ ★ जाब के स्थानकवासी जैन समाज ने मुनि धनीराम जी की प्रेरणा से पंचकूले में एक गुरुकुल की स्थापना की। उसके संचालकों की इच्छा थी कि गुरुकुल का भार सेठी जी ले लें। किसी तरह सेठी जी राजी हुए। वे चाहते थे कि पंचकूला को क्रान्तिकारियों का केन्द्र बनाया जाये और फरार देश भक्तों को उसके पहाड़ी इलाकों में छिपाने का प्रबन्ध किया जाय। तदनुरूप कुछ कार्य भी किया गया, परिणामतः इस गुरुकुल से भी सेठी जी का सम्बन्ध विच्छेद हो गया। ★ ★ सेठी जी दारिद्र्यव्रती थे। वे तमाम जीवन गरीबी से जूझते रहे और अपने परिवार को भी इस गरीबी में रहने को मजबूर किया। वे चाहते तो अन्य नेताओं की तरह सुख-चैन से रह सकते थे, पर उनके पास तो किसी का दिया हुआ भी जो कुछ आता था वह देश सेवा के यज्ञ में होम हो जाता था। उनके इस दारिद्र्यव्रत का एक संस्मरण, जो श्री गोयलीय जी ने यहाँ दृष्टव्य हैलिखा है, ★ - 'मैं सन् 32 में कारागार से मुक्त होने के बाद सेठीजी की चरण-रज लेने अजमेर पहुँचा। वहाँ जाकर जो उनकी स्थिति देखी, उससे कई घण्टे सुबक- सुबक कर रोता रहा । सर्वस्व होम देने के बाद, जिन्दगी भर स्वयं भी देश - सेवा में जूझते रहने के कारण घरेलू स्थिति भयावह हो उठी ! आर्थिक स्रोत सब सूखे हुए और 8.10 प्राणियों के भरण-पोषण की समस्या । मौत के सामने भी घुटने न टेकने वाला सेठी स्वयं तो न झुका, पर उसकी कमर झुक गई। उसमें वह तनाव और बाँकपन देखने में न आया। घर का वातावरण मुझसे ओझल नहीं रह सका । तभी बरफ बेचने वाले ने रबड़ी मलाई की बरफ की चटखारेदार आवाज दी तो बच्चों For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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