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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 102 स्वतंत्रता संग्राम में जैन कार्यालय में मैंनेजर से बातचीत के दौरान पूछा। नहीं पढ़ा जाता।" जवाब सुनकर मैं खिसियाना-सा खड़ा मैंनेजर ने बताया- "मंत्रीजी, व्यक्तिगत डाक में रह गया। घर आकर गैरत ने तख्ती और उर्दू का कायदा ज्ञानपीठ का पोस्टेज खर्च नहीं करते हैं। दुअन्नी लाने को मजबूर कर दिया।"... टिकट के लिए दी है।" बाद में आप प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार शेरसिंह गोयलीयजी हिन्दी, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, 'नाज' के साथ मुशायरों में जाने लगे। गोयलीय जी अंग्रेजी, आदि के उद्भट विद्वान् थे। नाटक, कविता, की रगों में राष्ट्रीयता और जिनभक्ति का लहू दौड़ा कहानी, निबन्ध आदि सभी विधाओं में उनकी करता था उनकी एक नज्म यहाँ दृष्टव्य है, जो उन्होंने अप्रतिहत गति थी। इतिहास और पुरातत्त्व के वे खोजी बैरिस्टर चम्पतराय के स्वागतार्थ 21 जनवरी 1927 विद्वान् थे। 'दास' और 'तखल्लुस' उपनाम से उन्होंने को कही थीउर्दू शायरी को बहुत कुछ दिया है। गोयलीयजी ने उर्दू 'मकताँ हैं बेमिसाल हैं और लाजवाब हैं कैसे सीखी उन्हीं की जुबानी सुनिये हुस्ने सिफाते दहर में खुद इन्तख्वाब हैं। "मेरे अज्ञात हितैषी ! पीरी में भी नमनूमे अहदे शबाब हैं। न जाने इस वक्त तुम कहाँ हो ? न मैं तुम्हें गोयाकि जैन कौम के एक आफताब हैं।' जानता हूँ और न तुम मुझे जानते हो, फिर भी तुम जैन साहित्य और संस्कृति का क्रमबद्ध और कभी-कभी याद आते रहते हो। बकौल फिराक प्रामाणिक इतिहास न होने की पीड़ा गोयलीय जी को गोरखपुरी सदैव सालती रही। जिसकी अभिव्यक्ति 'जैन जागरण मुद्दतें गुजरी तेरी याद भी आई न हमें। के अग्रदत' में निम्न शब्दों में हुई हैऔर हम भूल गये हों तुझे, ऐसा भी नहीं।। हमारे यहाँ तीर्थङ्करों का प्रामाणिक जीवन-चरित्र तुम्हें तो 27 जनवरी 1921 की वह रात स्मरण नहीं, आचार्यों के कार्य-कलाप की तालिका नहीं, नहीं होगी, जबकि तुमने मुझे अन्धा कहा था। मगर जैन संघ के लोकोपयोगी कार्यों की सूची नहीं; मैं वह रात अभी तक नहीं भला हँ। रौलेट एक्ट के जैन-सम्राटों, सेनानायकों, मंत्रियों के बल पराक्रम और आन्दोलन से प्रभावित होकर मई 1919 में शासनप्रणाली का कोई लेखा नहीं, साहित्यिकों एवं चौरासी-मथरा-महाविद्यालय से मध्यमा की पढाई कवियों का कोई परिचय नहीं। और-तो- और. छोडकर मैं आ गया था और कांग्रेस कार्यों में हमारी आँखों के सामने कल-परसों गुजरने वाली मन-ही-मन दिलचस्पी लेने लगा था। उन्हीं दिनों विभूतियों का कहीं उल्लेख नहीं है; और ये जो सम्भवतः 26 जनवरी 1921 ई0 की बात है, रात को दो-चार बड़े-बूढ़े मौतकी चौखट पर खड़े हैं; इनसे चाँदनी-चौक से गुजरते समय बल्लीमारान के कोने भी हमने इनके अनुभवों को नहीं सुना है, और पर चिपके हुए कांग्रेस के उर्दू पोस्टर को खड़े हुए शायद भविष्य में दस-पाँच पीढ़ी में जन्म लेकर मर बहत से लोग पढ़ रहे थे। मैं भी उत्सुकतावश वहाँ जाने वालों तक के लिए परिचय लिखने का उत्साह पहुँचा और उर्दू से अनभिज्ञ होने के कारण तुमसे पूछ हमारे समाज को नहीं होगा। बैठा "बड़े भाई ! इसमें क्या लिखा हुआ है?" तुमने प्राचीन इतिहास न सही, जो हमारी आँखों के फौरन जवाब दिया- "अमां अन्धे हो, इतना साफ पोस्टर सामने निरन्तर गुजर रहा है, उसे ही यदि हम For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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