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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 80 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद चौथमल भण्डारी 1942 के 'भारत छोडो आन्दोलन' में जेल में ही अपना जीवन भारत माता के चरणों में समर्पित करने वाले अमर शहीद चौथमल भण्डारी का जन्म 3 जुलाई 1926 को ग्राम कायथा, जिला - उज्जैन (म०प्र०) में हुआ । इनके पिता का नाम श्री केशरी मल भण्डारी था जो आस-पास की जनता में अत्यन्त लोकप्रिय थे। माता धार्मिक स्वभाव वाली समाज सेविका महिला थीं। किशोरावस्था में ही भण्डारी जी जुलूसों और सभाओं में जाने लगे थे। सिर पर सफेद टोपी, धोती और कुर्ता, यही वेषभूषा थी चौथमल भण्डारी की। भण्डारी जी ने महिदपुर क्रान्ति में भाग लिया था। श्री विनायक राव व्यास इनके क्रान्तिकारी साथी थे। 1942 के आन्दोलन में भण्डारी जी को 20 अगस्त 1942 को बन्दी बना लिया गया। 22 जुलाई 1943 को इन्दौर जेल में ही उनकी किसी कारणवश मृत्यु हो गई। शव यात्रा इन्दौर में निकाली गई थी, जिसमें अनेक कांग्रेसी नेता सम्मिलित हुए थे। इन्दौर (म०प्र०) से प्रकाशित होने वाले 'जैन प्रतीक' (मासिक) ने अपने जुलाई 1996 के अंक में 'जैन समाज का गौरव : अमर शहीद चौथमल भण्डारी' शीर्षक से एक सचित्र लेख प्रकाशित किया है जिसके अनुसार इन्दौर का सर्राफा बाजार प्रति गुरुवार को अमर शहीद के सम्मान में बन्द रहता था। इनके पिता को अल्प समय के लिए पेंशन भी मिली थी। लेख के अनुसार 'शासन ने इनकी (चौथमल भण्डारी की ) स्मृति में इन्दौर में शहीद चौथमल उद्यान ( जो आज नहीं) तथा कायथा इनकी जन्मस्थली पर शासकीय आयुर्वेदिक औषधालय बनाया था, किन्तु आज इस आयुर्वेदिक औषधालय पर इनके नाम का स्मृति पटल नहीं है । इन्दौर उद्यान के बाद एक मार्ग का नाम 'शहीद चौथमल भण्डारी' रखा था।' (पृष्ठ-4) 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक', भाग 4, पृष्ठ 162 पर चौथमल भण्डारी जी का नाम स्वतन्त्रता सेनानियों की सूची में है। इस सूची के अनुसार भण्डारी जी ने दि० 3 जून 1942 से 24 सितम्बर 1942 तक कारावास भोगा था। नई दुनिया, इन्दौर में प्रकाशित एक संक्षिप्त परिचय में भी चौथमल भंडारी को शहीद लिखा गया है। - आ०- (1) म0प्र0 स्व0 सै0, भाग 4, पृष्ठ 162, (2) जैन प्रतीक, इन्दौर, जुलाई 1996, (3) नई दुनियां, इन्दौर, 31-12-1997 For Private And Personal Use Only श्री अर्जुनलाल सेठी के वफादार और जांवाज शिष्य वीर मोतीचन्द जैन की फाँसी की सजा हो गई। मोतीचन्द महाराष्ट्रियन जैन थे। सेठी जी को बहुत सदमा पहुँचा । मोतीचन्द की पवित्र स्मृति में सेठी जी ने अपनी कन्या का विवाह महाराष्ट्र के एक युवक से इस पवित्र भावना से कर दिया कि " मैंने जिस प्रान्त और जिस समाज का सपूत देश को बलि चढ़ाया है उस प्रान्त को अपनी कन्या अर्पण कर दूँ। सम्भव है उससे भी कोई मोती जैसा पुत्र रत्न उत्पन्न होकर देश पर न्यौछावर हो सके । "
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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