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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 74 स्वतंत्रता संग्राम में जैन अन्त में बड़े जेल के दवाखाने में आने पर उनकी मित्रों से भेंट हुई। तब अणस्कुरे जी ने कहा-'पी० बी०! मैं माफी का साक्षीदार (पुलिस का गवाह) बन गया हूँ। क्या इसलिए नाराज हो? मेरी आधी बीमारी तो तुम लोगों की प्रतारणा है। मैं सच कह रहा हूँ कि हाथ की असहनीय वेदना से ही मजबूरन यह करना पड़ा है। दोस्तों की जबरदस्ती और जेल से छूटने पर रोगमुक्त होने की उम्मीद से माफी का गवाह बनने की अर्जी मैंने दी है। पर..........' उचित समय पर मुकदमा शुरू हुआ। अन्तिम जवाब में जज महोदय के सामने अणस्कुरे जी ने पुलिस विरोधी और क्रान्तिकारियों के पक्ष में बयान दिये। उल्टी गवाही से पुलिस भौंचक्की रह गई। अब को पुलिस के अत्याचार उन पर और अधिक बढ़ गये। उन्हें यम-यातनाओं (कठोर-कष्टों) का सामना करना पड़ा। पीड़ा बढ़ती गई, बीमारी बढ़ती गई और बढ़ती गई मन की 'निराशा। उन्हें छुड़ाने के बहुतेरे प्रयत्न किये गये। बीमारी की हालत में अन्त में उन्हें पाँच हजार की जमानत पर छोड़ा जाना तय हुआ। कोल्हापुर के श्री बापूसाहेब श्रीमंधर मिरजे जी ने पाँच हजार रुपयों की जमानत पर उन्हें छुड़ाया। मिरज में उनका उपचार जारी रहा। पर पुलिस द्वारा की गई इतनी तीव्र पिटाई और घाव की निरन्तर जानबूझकर की गई उपेक्षा के कारण उपचार का कोई असर नहीं हुआ। अन्त में 1945 के आषाढ़ मास में जिस दिन उन पर पुनः मुकदमा चलने वाला था उस दिन अणस्कुरे जी देश की आजादी का सपना दिल में ही संजोये शहीद हो गये। अणस्कुरे जी के छोटे भाई को 1945 के सांगाव अधिवेशन में श्रीदेव जी के हाथ से 'कोल्हापुर प्रजा परिषद्' की ओर से शील्ड प्रदान की गई थी। आ०-सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 000 | शहीदों की शौर्यगाथा किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान सम्पत्ति होती है। उनके गौरवमय बलिदानों का पुण्य स्मरण युवकों की धमनियों में देशभक्ति का रक्त संचारित कर उनमें अन्याय, अनाचार, अभाव, गरीबी, शोषण, उत्पीड़न और असमानता को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने की अमोघ शक्ति उत्पन्न करता है, जिससे वे देश निर्माण के रथ को विद्युत गति से खींचने लगते हैं। जो राष्ट्र अपने शहीदों की कुर्बानियों का गुण-गान नहीं करता, वह अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। ___ -रघुबीर सहाय (मध्य प्रदेश संदेश, 15 अगस्त 1987) For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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