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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 56 स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद सिंघई प्रेमचंद जैन दमोह (म0प्र0) जिले के एक छोटे से ग्राम सेमरा बुजुर्ग में उस दिन प्रेम की बरसात होने लगी, सारे गांव में सुख छा गया, जिस दिन भारतमाता से प्रेम करने वाले अमर शहीद प्रेमचंद का जन्म सिंघई सुखलाल एवं माता सिरदार बहू के आंगन में हुआ। सिंघई प्रेमचंद जैन बचपन से ही उत्साही, लगनशील, निर्भीक, प्रतिभाशाली एवं होनहार युवक थे। सुखलाल जी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी बालक प्रेमचंद को उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने के लिए दमोह के महाराणा प्रताप हाईस्कूल में भेज दिया। दिसम्बर 1933 में पूज्य महात्मा गांधी का दमोह नगर में आगमन हुआ। प्रेमचंद 16 कि0मी0 चलकर उनका भाषण सुनने दमोह आये, कहते हैं इसके बाद वे लौटकर गांव नहीं गये और दमोह में ही आजादी के महायज्ञ में कूद पड़े। जंगल सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, मादक वस्तुओं के विक्रय केन्द्रों पर धरना, नमक सत्याग्रह, झण्डा फहराना आदि साहसिक कार्यों में भाग लेने के परिणामस्वरूप सिंघई जी को स्कूल से निकाल दिया गया। तब आप खादी-प्रचार, अछूतोद्धार और गांव-गांव में डुग्गी बजाकर गांधी जी के सन्देशों का प्रचार करने लगे। देशभक्ति की ऐसी लगन देखकर श्री रणछोड़ शंकर धगट आपको गांधी आश्रम, मेरठ ले गये। मेरठ में आप तीन वर्ष रहकर 1937 में लौटे और श्री प्रेम शंकर धगट, सिंघई गोकल चंद, श्री रघुवर प्रसाद मोदी, श्री बाबू लाल पलन्दी आदि के साथ सक्रिय एवं कर्मठ कांग्रेस कार्यकर्ता बन गये, जिससे स्थानीय प्रशासन आपके नाम से थर्राने लगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होते ही, युद्ध में भाग लेने के लिए सैनिकों की जगह-जगह भर्ती होने लगी। दमोह भी इससे अछूता नहीं रहा। सागर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फारुख दमोह पधारे, उन्होंने टाउन हाल के प्रांगण में सेना में भर्ती हेतु जनसमुदाय को सम्बोधित किया। इस जनसमूह में लगभग 6 हजार श्रोतागण एकत्रित थे। रईस, जागीरदार, मालगुजार, तालुकेदार विशेष आमन्त्रण द्वारा बुलाये गये थे और उन्हें प्रथम श्रेणी की कुर्सियां प्राप्त थीं। अभी कमिश्नर का भाषण चल ही रहा था कि अचानक भीड़ में से सिंह-गर्जना करते हुए सिंघई प्रेमचंद ने कहा -'यह युद्ध हमारे देश के हित में नहीं है, हमें कोई मदद नहीं करना है, युद्ध ब्रिटिश राज्य की सुरक्षा के लिए लड़ा जा रहा है, हम इसका बहिष्कार करते हैं।' इस ललकार से डिप्टी कमिश्नर क्रोध से आग-बबूला हो गया। उसके आदेश से तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर श्री जगदीश अवस्थी ने प्रेमचंद जी को गिरफ्तार कर लिया। पर यह क्या ? प्रेमचंद जी के गिरफ्तार होते ही जनसमुदाय उखड़ गया। सभा में गड़बड़ी उत्पन्न हो गई। जनसमुदाय की उत्तेजना देख डिप्टी कमिश्नर ने तत्काल प्रेमचंद को मंच पर बुलाया और कहा- 'इन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है, इन्हें तो मैंने अपने पास बलाया था, अब ये भाषण देंगे।' प्रेमचंद जी ने अपने भाषण में कहा- 'भाइयो ! यह युद्ध ब्रिटिश सरकार की सुरक्षा के लिए लड़ा जा रहा है। इसमें देशवासियों का हित नहीं है। यह फिरंगियों की चाल है। अत: कोई सेना में भर्ती नहीं होना और न इन्हें आर्थिक मदद ही करना।' इस सम्बोधन के पश्चात् जनसमूह ने 'सिंघई प्रेमचंद जिन्दाबाद', 'प्रेमचंद की जय' के नारों के साथ आपको कन्धों पर उठा लिया और गांधी चौक में ले आये, यहाँ जनता फिर For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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