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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड ने अपनी दो सहायक सहेलियों के साथ पुरुषों की वेश-भूषा में आकर सेना की कमान संभाली। युद्ध निर्णायक हुआ, जिसमें रानी को संगीन गोली एवं तलवार से घाव लगे तथा उनकी सहेली की भी गोली से मृत्यु हो गयी। यद्यपि आक्रमणकर्ताओं को भी रानी के द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया, किन्तु घावों से वे मूर्च्छित हो गईं। साथियों द्वारा उन्हें पास ही बाबा गंगादास के बगीचे में ले जाया गया, जहाँ वे वीरगति को प्राप्त हुईं। शीघ्र ही उनका तथा सहेली का दाह-संस्कार कर दिया गया। लक्ष्मीबाई के इस गौरवमय ऐतिहासिक बलिदान के चार दिन बाद ही 22 जून 1858 को ग्वालियर में ही राजद्रोह के अपराध में न्याय का ढोंग रचकर लश्कर के भीड़ भरे सर्राफा बाजार में ब्रिगेडियर नैपियर द्वारा नीम के पेड़ से लटकाकर अमरचंद बांठिया को फाँसी दे दी गई। बांठिया जी की फांसी का विवरण ग्वालियर राज्य के हिस्टोरिकल रिकार्ड में उपलब्ध दस्तावेज के आधार पर इस प्रकार है- 'जिन लोगों को कठोर दंड दिया गया उनमें से एक था सिन्धिया का खजांची अमरचंद बांठिया, जिसने विद्रोहियों को खजाना सौंप दिया था। बांठिया को सर्राफा बाजार में नीम के पेड़ से टाँगकर फाँसी दी गई और एक कठोर चेतावनी के रूप में उसका शरीर बहुत दिनों (तीन दिन) तक वहीं लटकाये रखा गया।' इस प्रकार इस जैन शहीद ने आजादी की मशाल जलाये रखने के लिए कुर्बानी दी, जिसका प्रतिफल हम आजादी के रूप में भोग रहे हैं। ग्वालियर के सर्राफा बाजार में वह नीम आज भी है। इसी नीम के नीचे अमरचंद बांठिया का एक स्टेच्यू हाल ही में स्थापित किया गया है। आ) - ( सन् सतावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग-2, पृ० 49-51 (2)म0 स0, 15 अगस्त 1987, पृष्ठ अ69-71 (3)अमर शहीद अमर चंद बांठिया (4) शोधादर्श, फरवरी 1987 (5) जैन प्रतीक, जून 1996 (6) इ0 अ0 ओ0, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 381 (7) The Martyrs, Page 31-33 (8) अमृतपुत्र, पृष्ठ 29 एवं 75ए (9) नई दुनियां, (इन्दौर) 11-8-1997 एवं 3-9-1997, (10) चौथा संसार (इन्दौर) 11-8-1997 000 भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति सम्मान की भावना अनुच्छेद 51 (क) भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह - (क) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें, (ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें, (ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें, (घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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