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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 42 स्वतंत्रता संग्राम में जैन उपक्रम: चार अमर जैन शहीद अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन (कानूनगो) 1857 का स्वातन्त्र्य समर भारतीय राजनैतिक इतिहास की अविस्मरणीय घटना है। यद्यपि इतिहास के कुछ ग्रन्थों में इसका वर्णन मात्र सिपाही विद्रोह या गदर के नाम से किया गया है, किन्तु यह अक्षरशः सत्य है कि भारतवर्ष की स्वतन्त्रता की नींव तभी पड़ चुकी थी। विदेशी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध ऐसा व्यापक एवं संगठित विद्रोह अभूतपूर्व था। इस समर में अंग्रेज छावनियों के भारतीय सैनिकों का ही नहीं, राजच्युत अथवा असन्तुष्ट अनेक राजा-महाराजाओं, बादशाह-नवाबों, जमींदारों- ताल्लुकदारों का ही नहीं, सर्व साधारण जनता का भी सक्रिय सहयोग रहा है। विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने व विदेशी शासकों को देश से खदेड़ने का यह जबरदस्त अभियान था। इस समर में छावनियां नष्ट की गईं, जेलखाने तोड़े गये, सैकड़ों छोटे-बड़े खूनी संघर्ष हुए, भयंकर रक्तपात हुआ, अनगिनत सैनिकों का संहार हुआ, अनेक माताओं को गोदें सूनी हो गईं, अबलाओं का सिन्दूर पुछ गया। यद्यपि अनेक कारणों से यह समर सफल नहीं हो सका, पर आजादी के लिए तड़प का बीज-बपन इस समर में हो गया था। इस स्वातन्त्र्य समर में हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख आदि सभी जातियों व धर्मों के देशभक्तों ने अपना योगदान दिया। अंग्रेजी सरकार को जिस व्यक्ति के सन्दर्भ में थोड़ा सा भी यह ज्ञात हुआ कि इसका सम्बन्ध विद्रोह से है, उसे सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। अनेक देशभक्तों को सरेआम कोड़े लगाये गये, तो अनेक के परिवार नष्ट कर दिये गये, सम्पत्तियां लूट ली गईं, पर ये देशभक्त झुके नहीं। आज भारतवर्ष की स्वतन्त्रता का महल इन्हीं देशभक्तों एवं अमर शहीदों के बलिदान पर खड़ा है। 1857 के इस क्रान्ति-यज्ञ में अपने जीवन की आहुति देने वालों में दो अमर जैन शहीद भी थे। प्रथम लाला हुकुमचंद जैन और दूसरे थे श्री अमर चन्द बांठिया। लाला हुकुमचंद जैन का जन्म 1816 में हांसी (हिसार) हरियाणा के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में श्री दुनीचंद जैन के घर हुआ। आपका गोत्र गोयल और जाति अग्रवाल जैन थी। आपकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई। जन्मजात प्रतिभा के धनी हुकुमचन्द जी की फारसी और गणित में विशेष रुचि थी, इन विषयों पर आपने कई पुस्तकें भी लिखीं। अपनी शिक्षा एवं प्रतिभा के बल पर आपने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के दरबार में उच्च पद प्राप्त कर लिया और बादशाह के साथ आपके बहुत अच्छे सम्बन्ध हो गये। 1841 में मुगल बादशाह ने आपको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो एवम् प्रबन्धकर्ता नियुक्त किया। आप सात वर्ष तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे, फिर इलाके के प्रबन्ध के लिए हांसी लौट आये। इस बीच अंग्रेजों ने हरियाणा प्रान्त को अपने अधीन कर लिया। हुकुमचंद जी ब्रिटिश शासन में कानूनगो बने रहे, पर आपकी भावनायें सदैव अंग्रेजों के विरुद्ध रहीं। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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