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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टोका द्वि. श्रु. अ. ६ आईकमुनेगोशालकस्य संवादनि० ६३५ छाया-वागभियोगेन यदावहेको तादृशीं वाचमुदाहरेत् । अस्थानमेतद्वचनं गुणानां, नो दीक्षितो ब्रूयादुदारमेतत् ॥३३॥ अन्वयार्थः--(वायाभिजोगेण) वागभियोगेन (जमाव्हेज्जा) यदावहेत् । (तारिसं वाय नो उदाहरिज्जा) तादृशीं वाचं नोदाहरेत्-यया वाचा प्राणातिपातो भवेत् सा वाक् न वक्तव्या, (एयं वयणं गुणाणं अट्ठाणं) एतद् वचनम्-भवदुक्तं वचनं गुणानामस्थानम् (एयं उरालं) एतदुदारम् (दिक्खिए नो बूया) दीक्षितो नो वदेदिति ॥३३॥ 'वायाभिजोगेग' इत्यादि। शब्दार्थ-'वायाभिजोगेण-वागभियोगेन' जिस प्रकार के वचन का प्रयोग करने से 'जमावहेज्जा-पदावहेत्' पाप की उत्पत्ति हो 'तारिस वायं नो उदाहरिज्जा-तादृशं वाचं नोदाहरेत्' ऐसा वचन मेधावी पुरुषको संकटके समय भी नहीं बोलना चाहिए 'एयं वयणं गुणाणं अट्ठाणं-एतद्वचनं गुगानामस्थानम्' क्योंकी मावद्य भाषा भी कर्मबन्धका कारण होती है 'एयं उरालं-एतत् उदारम्' इस प्रकार का वचन गुणों का स्थान नहीं है, अतएव 'दिक्खिए नो ब्रूया-दीक्षितो नो वदेत्' दीक्षित पुरुष ऐसा सारहीन वचन न बोले ॥३३॥ - अन्वयार्थ--जिस प्रकार के वचन का प्रयोग करने से पाप की उत्पत्ति हो ऐसा वचन मेधावी पुरुष को संकट के समय भी नहीं बोलना 'चाहिए। क्योंकि सवद्य भाषा भी कर्मबन्ध का कारण होती है। खल 'वायाभिजोगेण' त्या Aval-'वायामि जोगेण-वागभियोगेन' 24 क्यानर प्रयो४२. पाथी 'जमावहेज्जा-यदावहेत्' ५५नी उत्पत्ती थाय 'तारिस वायं न उदाहरिज्जा -तादृशं वाचं नोदाहरेत्' मा क्यने। मुद्धिशाली ५३वास सहना समये ५ स न . 'एयं वयणं गुणाणं अट्ठाणं-एतद्वचनं गुणानामस्थानम्' भसाप सापा ५५ जना र ३५ डाय छे. 'एयं उरालं-एतत् उदार' भाषा प्रा२ना वयना गुपौतुं स्थान नथी. तथा दिक्खिए नो यूया दीक्षितो नो वदेत्' दीक्षित ५३२ मावा सार विनाना क्या न मा 331 અન્વયાર્થ– જે પ્રકારના વચને પ્રયોગ કરવાથી પાપની ઉત્પત્તી થાય બુદ્ધિમાન પુરૂષે તેવા વચને મુશ્કેલીના સમયમાં પણ બોલવા ન જોઈએ, કેમકે સાવધ ભાષા પણ કર્મબંધના કારણ રૂપ હોય છે. ખલપિંડ પુરૂષ છે, For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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