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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुनेगौशालकस्य संवादनि० ६२१ मूलम्-पिन्नागपिंडीमवि विद्धसूले केइ पएज्जा पुरिसे इमे त्ति। अलाउयं वावि कुमारएत्ति स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ।२६॥ छाया--पिण्याकपिण्डीमपि विद्ध्वा शूले कोऽपि पचेत्पुरुषोऽयमिति । अलाबुकं वाऽपि कुमार इति स लिप्यते माणिवधेनाऽस्माकम् ॥२६॥ अन्वयार्थ:- (केइपुरिसे) कश्चित्पुरुषः (पिन्नागपिंडीमवि) पिण्याकपिण्डमपि-खलपिण्डमपि (मुले) शूछे (विद्ध) विवा-आरोग्य (पुरिसे इमेत्ति) पुरुषो. ऽयमिति कृत्वा (पएज्जा) पचेत् पाचयेद्वाऽग्नौ, (वावि) वाऽपि-अथवाऽपि भगवान् उनका अनुमोदन नहीं करते और रागद्वेष से रहित होते हैं। यही बात सूत्रकार ने यहां दिखलाई है ॥२५॥ 'पिन्नागपिंडीमवि विद्ध सूले' इत्यादि । शब्दार्थ-'केह पुरिसे-कश्चित्पुरुषः' कोई पुरुष पिन्नागपिंडीमविपिण्याकपिलमपि खल के पिंड को 'सूले-शूले' शूली से 'विद्ध-विद्ध्वा' वेधकर (छेदकर) 'पुरिसे इमेत्ति-पुरुषोयमिति' यह पुरुष है, ऐसा सोच कर 'पएजा-पचेत्' पकावे 'वावि-अथवापि' अथवा 'अलावुर्ग-अलावुकं' तुंबे को 'कुमारएत्ति-कुमारोऽयमिति' कुमार (बालक) समझ कर पकावे तो हमारे मत के अनुसार 'स पाणिवहेण-सः प्राणिवधेन' वह पुरुष जीव वध से 'लिप्पइ-लिप्यते' लिप्त होता है 'अम्हं-अस्माकम्' ऐसा हमारा शाक्यों का मत है ॥गा० २६॥ अन्वयार्थ-कोई पुरुष खल के पिण्ड को शूली से वेध कर यह ભગવાન તેનું સમર્થન કરતા નથી. અને ભગવાન રાગદ્વેષ રહિત હોય છે. એજ વાત સૂત્રકારે અહિં બતાવેલ છે. મારા 'पिन्नागपिंडीमवि विद्धसूले' त्यादि . हाथ – 'केइ पुरिसे-कश्चित्पुरुषः' । ३५ पिनागपिंडीमवि-पिण्याक पिंडमपि' पसना पिउने सूले-शूले' शूजी ५२ 'विद्ध- विधा' पाधान पुरिसे इमेत्ति'-पुरुषोऽयमिति' 24५३५ छ, तम मानीने 'परज्जा-पचेत्' २ वावि अथवापि' अथातो 'अलावुग'-अलावुक' तुमाने 'कुमारएत्ति-कुमारोऽयमिति' भी शुमार थेटले , माण छ, म समझने राधे तो अमारा भत प्रभार 'म पाणिवहेण-मः प्राणिवधेन' ते ५३५ ११५थी 'लिप्पइ-लिप्येत' वित थाय छे. ॥२६॥ અન્વયાર્થ–કે પુરૂષ ખલપિંડને શુળીથી વધીને આ પુરૂષ છે એમ For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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