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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -- मूलम्-गंता च तत्थ अदुवा अगंता, वियागरेज्जा समियासु पन्ने। अणारिया दंसणओ परित्ता, इति संकमाणो णे उति तत्थ ॥१८॥ छाया-गत्वा च तत्राऽथवाऽगत्वा, व्यागृगीयात्समतयाऽऽशुपज्ञः। __ अनार्या दर्शनतः परीता इति शङ्कमानो नोपैति तत्र ॥१८॥ अन्वयार्थ:--(आसुगन्ने) आशुमज्ञः (गंता) गत्या (तस्थ) तत्र-प्रश्नकः समीपम् (अदुवा) अथवा (अगंता) अगस्वैव प्रश्नकर्तुः समीपम् (वियागरेज्जा) 'गंता च तत्थ अदुवा अगंता' इत्यादि। शब्दार्थ--'आसुपन्ने-अशुपज्ञः' सर्वज्ञ महावीर 'तस्थ-तत्र' प्रश्न करनेवाले के समीप 'गंता-गत्वा' जाकरके 'अदुवा-अथवा' अथवा 'अगंता-अगत्वा' न जाकर भी 'समिया-समतया' समभावसे 'वियागरेज्जा-व्यागृणीयात्' धर्मका उपदेश अथवा प्रश्नों के उत्तर देते हैं। रागद्वेष से युक्त होकर कभी भी भाषण नहीं करते, 'अणारिया-अनार्या:' अनार्य जन 'दसणओ-दर्शनात् सम्यक्त्व 'परित्ता-परीता' भ्रष्टरहित होते हैं 'इति संकमाणो-इति शङ्कमान:' ऐसी आशंका से 'तत्य -तत्र' उनके पास अनार्य देशमें 'न उवेति-नोपैति' नहीं जाते हैं। भय के कारण न जाते हों ऐसा कहना उचित नहीं है ॥गा०१८॥ अन्वयार्थ-सर्वज्ञ महावीर स्वामी श्रोताओं के समीप जाकर 'ताव तत्थ अदुवा अगता' त्यादि शाय--'आसुपन्ने-आशुत्रज्ञः'. सर्प भी२२१ामी 'तत्थ-तत्र' प्रश्न ४२वावाजानी पांसे 'ग'ता-गत्वा' ने 'अदुवा-अथवा' अथवा 'अगंता भागत्वा' या विना पा 'समिया -समतया' सममाथी 'वीयागरेज्जा-व्यागृ. णीयात' धर्मना ६५श अथवा प्रशोना उत्तरे। माछ. रागद्वषथी युत यह भाषा ४२॥ नथी. 'अणारिया-अनार्या:' अनाया । 'दसणओ -दर्शनात्' सम्यवथी परित्ता-परीता' ब्रटमेट सम्म विनाना डाय छ. 'तत्थ-तत्र' या तमानी पांसे मनाय शम 'न उति-नोपैति' लता તથી, ભયને કારણે તેઓની સમીપે જતા નથી તેમ નથી. ૧૮ અન્વયાર્થ–સર્વજ્ઞ મહાવીર સ્વામી શ્રોતાઓની પાસે જઈને અથવા For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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