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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1 ५०० www.kobatirth.org सूत्रता मूलम् - भावणाजोगसुद्धप्पा जेले णावा व आहिए । नावा व तीरंसंपन्ना सेव्वदुक्खा तिउहई ||५|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाया - भावना योगशुद्धात्मा जले नौरिव आख्यातः । तीरसंश्मा सर्वदुःखात् त्रुटति ||५|| नौरिव - अन्वयार्थः -- ( भावणाजोगसुद्धप्पा) भावनायोगशुद्धात्मा-सत्संयमसंस्काररूपवृद्धभावनाभावितात्मा मुनिः (जले) जले जळशब्देन जलमचुरे समुद्रे (नाचा व ) नौरिख (हिए) आख्यातः कथितः भगवद्भिः । एतेन किमिति दृष्टान्तेन स्पष्टयति- (तीर संपन्ना) तीरसंपन्ना वीरं प्राप्ता (नावा व ) नौरिव स मुनिः (सब'भावणाजोगसुद्धा' इत्यादि । - शब्दार्थ - ' भावना जोगसुद्धप्पा - भावना योगशुद्धस्मा' सरसंयम रूप शुद्ध भावना रूपी योग से शुद्ध आत्मावाला पुरुष 'जले - जले' जल शब्द से जलाधिक पनेवाले समुद्र में 'णावा व नौरिव' नाव के समान 'आहिए - आख्यातः' कहा गया है 'तीरसंपन्ना-तीरसंपन्ना' तीर - किनारे को प्राप्त करके 'णावा व नौरिव' जैसे नौ विश्राम करती है ऐसा वह मुनि 'सव्यदुक्खा - सर्वदुःखात्' शारीरिक और मानसिक क्लेशों से 'तिउट्टद्द त्रुट्यति' मुक्त होता है ||५|| - अन्वयार्थ - भावनायोग से अर्थात् सत्संयम के संस्कार से शुद्ध आत्मा वाला मुनि जल में अर्थात् जल की प्रचुरता वाले समुद्र में चौका के समान कहा गया है। इससे क्या फल होता है ? यह दृष्टान्त के शब्दार्थ' - 'भावणाजोगसुद्धवा-भावना योगशुद्धात्मा' सत् सत्यम३५ शुद्ध भावना ३यी योगी शुद्ध आत्मावाणी ३ष 'जले - जले' ४ शशी साधि पावाजा समुद्रमां 'नावाव- नौवि' होडीनी प्रेम 'आहिए - आख्यात:' हे छे, 'वीरसंपन्ना - तीर संपन्नाः ' तीर-हिनाशने प्राप्त उरीने 'नावाब- नौवि' भ छोडी विश्राम हरे थे. ये रीते ते भुनि 'सव्वदुक्खा सर्वदुःखात्' शारीरिक ने मानसि उसे थी 'तिउट्टइ त्रुयति' भुत थाय छे અન્નયા —ભાવના ચોગથી અર્થાત્ સત્સંયમના સંસ્કારથી શુદ્ધ આત્મા વાળા મુનિ જળમાં અર્થાત્ જલની પ્રચુરતાવાળા સમુદ્રમાં નૌકા જેવા કહેલ છે. તેનાથી શુ ફળ થાય છે? તે નીચેના દૃષ્ટાન્તથી સ્પષ્ટ કરે છે. કિનારાને For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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