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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Viz छाया - समालपेत् प्रतिपूर्ण भाषी, निशम्य सम्यगर्थदर्शी । - सूत्रकृताङ्ग सूत्रे आइया शुद्धं वचनमभियुञ्जीत, अभिसन्धयेत्पापविवेकं भिक्षुः ||२४|| अन्वयार्थ :- -(भिक्खू ) भिक्षुः साधुः 'पडिपुन्नभासी' प्रतिपूर्ण भाषी - स्प ष्ट्राविता ( निसामिया) निशम्य - गुरुमु बात् सूत्रार्थं सम्यगवधार्य (समिया ) सम्यक् सम्यग्रूपेण ( अद्वदंसी) अर्थदर्शी तसार्थज्ञाता ( आणाइ) आज्ञया - तीर्थ 'समालवेज्जा' इत्यादि । शब्दार्थ -- ' भिक्खू - भिक्षुः' साधु 'पडिपुण्णभासी - प्रति पूर्ण भाषी ' स्पष्टार्थ को कहे अर्थात् जो अर्थ अल्पाक्षरसे समझने में शक्य न हो ऐसे अर्थ को विस्तृत रूपसे जिस प्रकार से श्रोता समझ सके उस रूपसे 'समालवेज्जा - समालपेत्' कहे 'निसामिया - निशम्य' गुरुमुख से सूत्र और उसके अर्थ को सम्यक् रूपसे समझकर 'समिया - सम्यकू' सम्यक प्रकार से 'असी - अर्थदर्शी' तत्वार्थ को जानने वाला 'आणाइ आइया' तीर्थंकर प्रति ॥दित शास्त्र के अनुसार 'शुद्ध-शुद्धम्' निरवय 'वर्ण-वचनम् ' वचनका भिउंजे अभियुञ्जीत' प्रयोग करे ऐसा करने वाला साधु 'पावविवेगं पापविवेकम्' सत्कार आदि निरपेक्ष होने से दोष रहित वचन 'अभिसंघए- अभिसंदध्यात् कथन करे ||२४|| अन्वयार्थ - निर्दोष भिक्षा ग्रहण करने वाला और स्पष्टार्थवक्ता साधु गुरुमुख से सूत्रार्थ को अच्छे प्रकार समझ कर समीचीन रीति 'समालवेज्जा' इत्याहि शब्दार्थ' - 'भिक्खू - भिक्षुः ' साधु 'पडिपुण्णभासी - प्रतिपूर्ण भाषी' स्पष्टार्थ પૂર્વક કથન કરે અર્થાત્ જે અાક્ષરથી સમજવામાં શકય ન હોય એવા અને વિસ્તાર પૂર્વક કે જે રીતે સાંભળનારાએ સમજી શકે એ રીતે 'समालवेज्जा - समालपेत्' डे ' निखामिया - निशम्य' गु३भुषथी सूत्र मने तेना मर्थने सारी रीते समने 'समिया - सम्यकू' सभ्य प्रहारथी 'अट्ठदेसी - अर्थ दर्शी' तत्वार्थने अणुवावाजा ' आणाइ - आज्ञया' तीर्थ ५२ प्रतिपादित शास्त्र अभाये 'सुद्ध'-शुद्धम्' निरवद्य 'घयणं वचनम्' वयननुं 'भिरंजे अभियुञ्जीत ' प्रयोग उसे मे उषावाणी साधु 'पावविवेगं - पापविवेकम् ' सत्४२ विगेरे अपेक्षा रहित होवाथी होष रहित वयनतु' 'अभिसंघए- अभिसंदध्यात् ' થન કરે ારકા For Private And Personal Use Only અન્નયા —નિર્દોષ ભિક્ષા ગ્રહણુ કરવાવાળા અને સ્પષ્ટ અને કહે. જાવાળા સાધુ સુખથી સૂત્રાને સારી રીતે સમજીને સમ્યક્ રીતથી તત્વા ને
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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