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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतास्त्र मूलम्-अह तेण मूढेण अमूढगस्स, कायव्व पूया सविसेसजुत्ता। एओवमं तत्थ उदाहु वीरे, ___ अणुगम्म अत्थं उवणेइ सम्मं ॥११॥ छाया-अथ तेन मूढेनाऽमूढस्य, कर्तव्या पूजा सविशेषयुक्ता। ____एतदुपमां तत्रोदाहृतवान् वीरः अनुगम्यार्थमुपनयति सम्यक् ॥११॥ अन्वयार्थः- (अह) अथ यथा तेन (मूढेण) मूढेन-मार्गभ्रष्टाद् व्याकुलितचित्तेन 'अमूढगस्स' अम्हस्य-तत्सन्मार्गोपदेष्टुः 'सविसेमजुत्ता' सविशेषयुक्ता 'अह तेण मूढेन' इत्यादि। शब्दार्थ-'अह-अथ' इसके पश्चात् 'तेण-तेन' उस 'मूढेण-मूढेन' मूर्ख को 'अमृढस्स-अमूढस्य' सन्मार्ग का उपदेश देनेवाले पुरुष की 'सविसेसजुत्ता-सविशेषयुक्ताः' विशेष आदर सन्मानपूर्वक 'पूयापूजा' पूजा 'कायव्या-कार्या' करनी चाहिए 'एओवमं-एतदुपमा यह उपमा 'तत्थ-तत्र' इस विषय में 'वीरे-वीर' तीर्थकर भगवान् महावीरने 'उदाहु-उदाहृतवान्' कहा है 'अटुं-अर्थम्' पदार्थ को 'अणुगम्मअनुगम्य' सम्यग रीति से जानकर 'सम्म-सम्मक' सम्यक प्रकार से 'उवणेइ-उपनयति' अपने में स्थिर करते हैं ॥११॥ अन्वयार्थ-जिस प्रकार वह पूर्वोक्त व्याकुल मूढ पुरुष मार्ग का भूला हुभा अपना सन्मार्गोपदेशक पुरुष का विशेषादर सम्मान के 'अह तेण मूढेन' त्या शहा-'अह-अथ' त पछी 'तेण-तेन' से 'मूढेण-मूढेन' भूम ५३ 'अमूढस्स-अमूढस्य' सन्मान पहेश मा५पापा ५३पनी 'सविसेसजुत्तासविशेषयुक्ताः' विशेष माह२ सन्मान पूर्व 'पूया-पूजा' on 'कायव्वा-कार्या" ४२वी एओवम-एतदुपमां' मा ५मा 'तत्थ-तत्र' ते वीषयमा 'वीरे -वीरः' तीथ ४२ लान् महावीर स्वाभीमे ‘उदाहु-उदाहृतवान्' हे छे. 'अटुं-अर्थम्' पहा 'अणुगम्म- अनुगम्य' सारी शत oneीने 'सम्म-सम्यक्' सय५ प्र४।२थी ‘उवणेइ-उपनयति' पोतानामा स्थि२ ४२ छे. ॥११॥ અન્વયથે–જે તે એ પૂર્વોક્ત માર્ગ ભૂલેલ વ્યાકુળ મૂઢ પુરૂષ પિતાને સન્માર્ગ બતાવનાર પુરૂષને વિશેષ આદર માન પૂર્વક કેમલ શબ્દાદિ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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