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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतास्त्रे छाया--शब्दान् श्रुत्वाऽथ भैरवान्, अनाश्रव स्तेषु परिव्रजेत् । निद्रांच भिक्षुर्न ममादं कुर्यात्, कथं कथं वा विचिकित्सा तीर्णः ।६। अन्वयार्थः-(भिक्खू) भिक्षुः-निरचय भिक्षाशीलः साधुः (सदाणि) शब्दान् -कर्णपियान् वेणुमृदङ्गादिशब्दान् 'सोच्चा': श्रुत्वा (अदु) अथवा (भेरवाणि) भैरवान्-भयावहान्-कर्णकटून सिंहादिशब्दान् श्रुत्वा (तेस) तेषु कर्णप्रिय कर्ण 'सहाणि सोच्चा' इत्यादि । शब्दार्थ-'भिक्खू-भिक्षुः' निर वद्य भिक्षा को ग्रहण करने वाला साधु 'सदाणि-शब्दान' कर्णप्रिय वेणु, मृदङ्ग आदि के शब्दों को 'सो. च्चा-श्रुत्वा' सुन करके 'अदु-अथवा' अथवा 'भेरवाणि-भैरवान्' भयङ्कर कर्णकटु सिंहादिके शब्दों को सुनकरके 'तेसु-तेषु' अनुकूल प्रतिकूल ऐसे शब्दों में 'अणासवे-अनाव:' रागद्वेष रहित होकरके 'परिव्यएज्जा-परिवजेत्' संयमके अनुष्ठान में तत्पर रहे तथा 'निइंचनिद्रांच' निद्राको और 'पमाय-प्रमादम्' प्रमाद 'न कुज्जा-न कुर्यात्' न करे इस प्रकार करनेवाला 'कहं कहं बा-कथं कथमपि कोइ भी विषयमें 'वितिगिच्छतिन्ने-विचिकित्सातीर्णः' चित्तचिप्लुतिरूप भ्रमको गुरु कृपा से पार करते हैं ॥६॥ ____अन्वयार्थ-निर्दोष भिक्षाग्रहण करनेवाला साधु कर्णप्रिय वेणु मृदङ्गादि शब्दों को सुनकर अथवा अत्यन्त भयजनक कर्णकटु सिंह. व्याघ्रादिका शब्दों को सुनकर उन उन कर्णप्रिय एवं कर्णकटु अनुकूल 'सहाणि सोच्चा' या शहाथ--'भिक्खू भिक्षुः नियमिक्षा ७५ ४२१।१७साधु 'सदाणि शब्दान्' ४ानने गमे ते वीणा, भृग विगेरेना शहोने 'सोच्चा-श्रुत्वा' Hinीने 'अदु-अथवा' मार 'भेरवाणि-भैरवान्' बय४२ ४९४२ सिंह विरना शोने सलगीन 'तेसु-तेषु' मनु प्रति 24t Avai 'अणा. सवे-अनाश्रवः' २१॥ सन द्वेष २हित मनाने परिष्वज्जा -परिव्रजेत्' सयमना अनुहानमा तत्५२ २२ तथा निइंच-निद्रांच' निद्राने भने 'पमाय-प्रमादम' प्रभाह 'न कुज्जा-न कुर्यात्' न ४२ तथा 'कह कवा-ककथमपि' ५२ विषयमा वितिगिच्छतिन्ने-विचिकित्सातीर्णः' वित्तविति ३५ अमन शु३३. पाथी पा२ ४२ छे. ॥६॥ અન્વયાર્થી-નિર્દોષ ભિક્ષા ગ્રહણ કરવાવાળે સાધુ કાનને પ્રિય વીણા, મુદગ વિગેરેના શબ્દોને સાંભળી અથવા અત્યંત ભયકારક કર્ણ કઠેર સિંહ, For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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