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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १३ याथातथ्यस्वरूपनिरूपणम् ३६५ छाया--एतान् मदान् विवियु धीरा, न तान् सेवन्ते सुधीरधर्माणः । ते सर्वे गोत्रापगता महपथ, उच्चामगोत्रां च गति व्रजन्ति ॥१६॥ अन्वयार्थः--(धीरा) धीराः-परमा वेत्तारः (एयाई) एतान्-जात्या. दिविषयकान् (मयाई) मदान् (विगिच) विनियुः-पृथक कुर्यु:-स्वात्मनः सका. शात निःसारयेयुः ते खल्लु धीराः (सुधीरधम्मा) सुधीरधर्माणः-तीर्थक प्रति'एयाइं मयाइं विनिंच धीरा' इत्यादि । शब्दार्थ-धीरा-धीराः' परमार्थतत्वको जानने वाला धीर पुरुष 'एयाई-एतान्' इन जात्यादि 'मयाई-मदान्' मदस्थानों को विनिंचपृथक्कुर्युः' अपने से दूरकरे ऐसा करने वाले पुरुष 'सुधीरधम्मा-सुधीरधर्माणा' तीर्थ कर के द्वारा प्रतिपादित धर्म का पालन करने वाले हैं 'ताणि-तान्' इन मदस्थानों को 'ण सेवेति-न सेवन्ते' सेवन नहीं करते हैं 'ते-ते' वे 'सव्यगोत्तावयगा-सर्वगोत्रापगता सब प्रकार के मद स्थानों को त्याग करने वाले 'महेसी-महर्षयः' महर्षि अर्थात विशेष प्रकार के तप से पाप को द्रकरने वाले 'उच्च-उच्चाम्' सर्वो. स्कृष्ट 'अगोत्तं च-अगोत्राच' गोत्र, जाति आदि मद से रहित ऐसी 'गई-गतिम्' मोक्षरूप गति को 'वयंति-व्रजन्ति' गमन करता है ॥१६॥ ____ अन्वयार्थ--धीर मेधावी परमार्थवेत्ता साधु पूर्वोक्त जाति कुलादि विषयक मदों को अपने अन्दर से निकाल दे। ऐसे धीर साधु तीर्थकर 'एयाई मयाई विगिच धीरा' त्यात शाय - 'धीरा-धीराः' ५२मा वाचाया धीर ५३५ 'एयाइ'एतान' म ति विगेरेना 'मयाई-मदान्' भस्थानाने 'विनिंच-पृथक्कुयुः चातानी इ२ ४२ सेम ४२वावाणे५३५ 'सुधीरधम्मा-सुधीरधर्माणः' तीय. ४२। द्वारा प्रतिपादन ४२यामा मावस भनु ५.४२ापामा छ. 'ताणि. तान्' मा मस्थानेने 'ण सेवंति-न सेवन्ते' सेवन ४२ता नथी. 'ते-ते तमे। सव्वगोत्तावयगा-सर्वगोत्रापगताः' च्या प्रारना महत्थानाने त्यास १२वा. वा 'महेसी-महर्षयः' महर्षि अर्थात विशेष प्रारना त५थी पापन र ४२वावाणा 'उच्च -उच्चाम्' समिट अोतंच-अगोत्राञ्च' मात्र, तिवरे भाथी २हित मेवी गई-गतिम्' भे.१३५ गतिमा 'वयंति-व्रजन्ति' गमन ४२ छ. ॥१६॥ અન્વયાર્થ—ધીર મેધાવી પરમાર્થ વેત્તા સાધુ પૂર્વેક્ત જાતિકુલ વિગેરે સંબંધી અને પિતાની અંદરથી દૂર કરે એવા ધીર સાધુ તીર્થ કરે પ્રતિપા For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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