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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir intestant टीका प्र.शु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् छाया - नादित्य उदेति नास्तमेति न चन्द्रमा बर्द्धते हीयते वा । M सलिलानि न स्यन्दते न वान्ति वाताः, बन्ध्यो नियतः कृत्स्नो लोकः॥७॥ अन्वयार्थः - सर्वशून्यतावादिनः- एवं कथयन्ति (आइचो ) आदित्य:- सूर्य (ण उएइ) न उदेति (ण अत्थमेइ) नास्तमेति च आदित्यः सूर्यस्यापि मायामयत्वेन तदुदयास्तयोः कथं संभवः । (चंदिमा) चन्द्रमाः (ण बडूई) शुक्लपक्षे व बर्द्धते (वा) वा अथवा (न हायई) कृष्णपक्षे न हीयते पुनश्च ( सलिला) सकि लानि - जलानि ( न संति) न स्यन्दन्ते तथा (वाया) वाता:- वायवः (न वंति) नं बान्ति न चलन्ति अत एव (कसिणे लोए) कृत्स्नो लोकः कृत्स्नः संपूर्णो लोका 'णाइकचो' इत्यादि । शब्दार्थ - सर्वशून्य मनवादी कहते हैं 'ओइच्ची-आदित्य' सूर्य ज उप-न उदेति' उदित नहीं होता है 'ण अस्थमेह - नास्तमेति' और न अस्त होता है। इसी प्रकार 'चंदिमा - चन्द्रमा' चंद्रमा 'ण वडूह -न वर्द्धते' शुक्लपक्ष में बढतानहीं है 'वा अधवा' अथवा 'न हायइन हीयते' कृष्ण पक्ष में घटता नहीं है तथा 'सलिला - सलिलानि' जब 'न संदति - न स्यन्दते' बहता नहीं है तथा 'वाया - वाता:' वायु-पवन 'ण वंति न वांति' चलता नहीं है अतएव 'कसिणे लोए- कृत्स्नो लोक ' यह सम्पूर्ण लोक माने जगत् 'नियतो- नियतः सर्वदा अवस्थायी है 'वंशो बन्थ्यो' मिथ्याभूत वस्तुतः शून्यरूप है ॥७॥ अन्वयार्थ - सर्वशुन्यतावादियों का कथन है कि- सूर्य उदित नहीं होता, न अस्त होता है । न चन्द्रमा बढता है, न घटता है। न जल'नाइच्चो' इत्यादि शब्दार्थ - सर्व शून्य मतने अनुसरनारा छेडे- 'आइकोआदित्यः' सूर्य' 'ण उपइन उदेति' उगता नथी. 'ण अत्थमेइ-नास्तमेति' भने तेन। व्यस्त पशु थतो नथी, न प्रमाणे 'च'दिमा- चन्द्रमा' चंद्र 'न बढइन वर्धते' शुम्स पक्षमां बघतो नही 'वावा' अथवा 'न हायइ- न हीयते' यु पक्षमां घटतेो नथी, तथा 'सलिला - सलिलानि' पाणी 'न सदति - न स्यन्दते ' वहेतु नथी. तथा 'बाया - वाता' पवन 'ण वंति न वान्ति' वातो नथी तेथील 'कसिणे लोए - कृत्स्नो लोकः' या समय सोड अर्थात् भगत् 'नियतो- नियतः ' सहा रडेवावा छे. 'वंझो - वन्ध्यो' मिथ्याभूत छे अर्थात् शून्य ३५ छे. ॥७ અન્નયાર્થી—સશૂય વાઢિયાનું કથન છે કે સૂર્યના ઉદય થતા નથી. તેમ અસ્તપણુ થતે નથી. ચંદ્રની વધ ઘટ પશુ થતી નથી. જલ વહેતુ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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