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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० सूत्रकृताङ्गसूत्र च्छिद्रामित्यर्थः 'नाव' नौकाम् 'दुरुहिया' दुरुह्य अधिरुह्य ‘पारं' पारम्-समुद्रस्य परंतीरम् ‘आगंतुं' आगन्तु-प्राप्तुम् इच्छई' इच्छति, किन्तु पारं गन्तुं न शक्नोति, अपितु 'अंतरा' अन्तरा-मध्ये एक जलमध्य एव 'विसीयई' विपीदति-दुःखमासादयति निमजतीत्यर्थः, साधनस्य सदुष्टतया कार्याक्षमत्वात् ॥३०॥ मूकम्-एवं तु समगा एंगे, मिच्छट्रिी अणारिया। सोयं कसिमावन्ना, आगंतारो महब्भयं॥३१॥ छाया-एवं तु श्रमणा एके, मिथ्यादृष्टयोऽनार्याः । स्रोतश्च कृत्स्नमापन्ना, आगन्तारो महद्भयम् ॥३१॥ प्रवेश कर रहा हो ऐमी सैकडो छेदों वाली नाव पर आरूढ होकर समुद्र के किनारे पहुंचने की इच्छा करता है, किन्तु वह पहुंच नहीं सकता। वह बीच जल में ही विषाद को प्राप्त होता है, दुःखी होता है, डूब जाता है, क्योंकि उसका साधन दूषित होने के कारण कार्य उत्पन्न करने में असमर्थ होता है ॥३०॥ 'एवंतु समणा एगे' इत्यादि। शब्दार्थ-'एवं तुमिच्छदिट्ठी अणारिया एगे समणा-एवं तु मिथ्या दृष्टयः अनार्याः एके श्रमणाः' इसी प्रकार मिथ्या दृष्टि कोई अनार्य श्रमण 'कसिणं सोयं आवना-कृत्स्नं स्रोतः आपनाः' पूर्णरूपसे आस्रव का सेवन करते हैं 'महाभयं आगंतारो-महद्भयम् आगन्तार' अतः वे महाभय को प्राप्त करेंगे ॥३१॥ રહેલ હેય એવી સેકડે છિદ્રોવાળી નાવ પર બેસીને સમુદ્રને કિનારે પહેચવાની ઈચ્છા જ કરે છે, પણ તે તેમ પાર પહેચી શકતો નથી, તે વચમાં પાણીમાં જ ખેઠને પ્રાપ્ત થાય છે, દુઃખી થાય છે, અને ડૂબી જાય છે. કેમકે તેનું સાધન દેલવાળું હોવાથી કાર્ય સિદ્ધ કરવામાં અસમર્થ હોય છે 3ના 'एवं तु समणा एगे' इत्यादि शा---'एवं तु मिच्छहिट्ठी अणारिया एगे समणा-एव तु मिथ्या दृष्टयः अनार्याः एके श्रमणाः' मे प्रमाणे मिथ्या दृष्टि पारे। अनाय श्रमय 'कमिणं सोय आवन्ना-कृतन स्रोतः आपन्नाः' पूर्ण ३५या मालकानु सेवन २ छ. 'महम्भय आगतारो-महद्भयम् आगन्तारः' तथा तसा महालय પ્રાપ્ત કરશે. ૩૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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