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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -- -- ---- सूत्रकृताङ्गसूत्रे इति । प्रामादौ पायो बाहुल्येन श्रद्धाशीलानां निवासस्थानं भवति, तत्र यदि धर्म श्रद्धालु धर्मबुद्धथा हिंसामयं कार्य कुर्यात-कुर्वन् साधु पृच्छेद् यन्मदीयमिदं कार्य शोभनं न वा ? तदाऽऽत्मगुप्तो जितेन्द्रियः साधु स्तादृशे सावकार्येऽनुमति नैव दद्यादिति भावः ॥१६॥ साधुः सावधकार्येऽनुमति न दद्यादेतद्विषये सुत्रकार आहमूलम्-तेहा गिरं समारब्म, अस्थि पुणं ति णो वैए । अहंवा णस्थि पुण्णं ति, एवमेयं महब्भयं ॥१७॥ छाया--तथागिरं समारभ्य, अस्तिपुण्यमिति नो वदेत् । अथवा नास्तिपुण्य मित्येतन्महाभयम् ॥१७॥ ग्राम आदि में प्राय: श्रद्धालु जनों के स्थान होते हैं, जहां साधु ठहर जाते हैं। ऐसे स्थानों में अगर कोई धर्म श्रद्धालु धर्म बुद्धि से हिंसामय कार्य करे और साधु से पूछे कि मेरा यह कार्य अच्छा है या नहीं ? तो आत्मगुप्त एवं जितेन्द्रिय साधु उस सावध कार्य में अनुमति प्रदान न करे ॥१६॥ साधु सावध कार्य में अनुमति न दे, इस विषय में सत्रकार कहते हैं-तहा गिर समारम्भ' इत्यादि । शब्दार्थ- 'तहागिर समारम्भ-तथा गिर समारभ्य' उम प्रकारकी पाणी सुनकर 'अस्थि पुण्णंति णो वए-अस्ति पुण्यमिति नो वदेत्' पुण्य है ऐसा न कहे 'अहवा गस्थि पुण्णंति-अथवा नास्ति पुण्यमिति' अथवा पुण्य नहीं है इस प्रकार का कथन भी 'एवमेयं महन्मयं-एकमेतन्महाभयम्' यह कहना भी महान् भय जनक है ॥१७॥ શ્રામ વિગેરેમાં પ્રાયઃ શ્રદ્ધાળું મનુષ્યોને નિવાસ હોય છે, કે જ્યાં સાધુ રહી જાય છે. એવા સ્થાનમાં અથવા જે કોઈ ધર્મ શ્રદ્ધાનું ધર્મબુદ્ધિથી હિંસામય કાર્યકરે અને સાધુને પૂછે કે-મારૂં આ કાર્ય સારું છે કે નહી ? તે આત્મગુપ્ત અને જીતેન્દ્રિય એવા સાધુએ તે સાવધ કાર્યમાં અનુમતિ भावी नही. ॥१६॥ સાધુ સાવધ કાર્યમાં અનુમતિ ન દે, આ વિષયમાં સૂત્રકાર કહે છે है-'तहा गिर समारभ' इत्यादि। शहाथ---'तहा गिर समारम्भ-तथा गिरं समारभ्य सेवा प्रारनी पी inीने 'अत्थि पुण्णंति णो वए-अस्ति पुण्यमिति नो वदेत्' ५५५ थाय छे. तेम नहे. 'अहवा णत्थि पुण्णति-अथवा नास्ति पुण्यमिति' मा पुष्य नथी For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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