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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 सूत्रकृताङ्गचे पूर्वोपदर्शितरीत्या चतुर्दशभूतग्रामात्मकतया 'छक्काय' षड्जीवनिकायाः । 'आहिया' आख्याताः कथिताः केवलज्ञानिभिः । ' तावए' एतावानेव इत्यन्त एव संक्षेपतो जीवनिकायो भवति, 'णावरे' नापर: 'कोई' कश्चिज्जीवनिकायः विज्जई' विद्यते एतावानेव जीवसमुदायो नापरः एतद्व्यतिरिक्तः कश्चिदिति । पूर्वोक्ताः पृथिव्यादयः पञ्चजीवनिकायाः, पश्च रूपः । तीर्थकरैरेते एव जीवनिकायाः प्रतिपादिताः नाऽन्ये - एतदव्यतिरिक्ताः सन्तीतिभावः ॥ ८ ॥ मूलम् - सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं, इमं पडिलेहिया । सब्वे अकं तदुक्खा य, अओ सव्वे ने हिंसया ॥९॥ छाया - सर्वाभिरनुयुक्तिभि, मतिमन् प्रतिलेख्य सर्वे अकान्तदुःखाथ, अतः सर्वान् न हिंस्यात् || ९ || छह प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त, अपयति । इस प्रकार सबको मिलाने से चतुर्दश प्रकार का भूतग्राम है। तीर्थंकर भगवानने इन छहों को ही षड्जीवनिकाय कहा है। इसके अतिरिक्त न कोई (संसारी) जीव है, न कोई जीवराशि है । तात्पर्य यह है कि पृथ्वीकाय आदि पांच और छठा स जीवनिकाय हैं। इतने ही जीव हैं। इनके अतिरिक्त और कोई जीव नहीं हैं ||८ ॥ 'सा' इत्यादि । शब्दार्थ - 'महमं- मतिमान् बुद्धिमान् पुरुष 'सम्बाहि अणुजुती हिं - सर्वाभिरनुयुक्तिभिः' सब प्रकार की युक्तियों से 'पडिछेहिया-प्रतिरूप' इन जीवों की सिद्धि करके 'सध्ये अकंतदुक्खा - सर्वे अकान्त प्रभारना होय छे. साज्ञी, असज्ञी, पर्याप्त, अपर्याप्त या रीते मधाने भेजવવાથી ચૌદ પ્રકારના ભૂતગ્રામ છે. તીથ કર ભગવાને આ છએને ષજીવनिहाय उस छे. या शिवाय है. (संसारी) व नथी तेम अर्थ શશિ નથી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે—પૃથ્વીકાય વિગેરે પાંચ અને છઠ્ઠા ત્રસ જીનિકાય છે. તીર્થં’કરાએ આજ છ. જીવનિકાય કહેલ છે, માટલાજ જીવે છે. આ શિવાય અન્ય કાઈ પણ જીવા નથી. ઘડા " सव्वाहि" धत्याहि शहाथ--‘मइमं-मतिमान्' युद्धिमान् यु३ष 'सव्वाहि अणुजुत्तीहि - सर्वाभिरनुयुक्तिभिः' अघा प्रहारनी युक्तियोथी 'पडिले हिया - प्रतिलेख्य' मा वानी For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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