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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतामने आन्वयार्थी-'मई मया' मतिमता-केवलज्ञानिना मननं मतिः सा यस्यास्ति स मतिमान तेन- तीर्थकरेण 'भाहणेणं' याहनेन-माहन मानेत्येवमुपदेश दायिना 'कर रे मागे' कतरः किं भूतो मार्ग:-प्रोक्षप्रापको मार्गः 'अक्खाए' आख्यातः कथितः 'जं मग्गं उज्जु पाविता' यं मार्ग मजुमकुटिल प्राप्य 'दुत्तरं ओघं तरई' दुस्तरम् ओघं तरति-दुरुत्तरं दुस्तरमोघं भौघं तरीत ॥१॥ ____टीका-- एकस्मात् स्थाना स्थानानारं पाययति स मार्गः-पन्थाः । स च मार्गः द्विविधः-प्रशस्ताऽप्रारत भेदात् । तथा-द्रव्यभावरूपो लौकिको लोको. तरश्च । सुन द्रव्यमार्गो लौकिका भावमार्गस्तु लोकोत्तरी मोक्षमारकः, मोक्षस्य स्वामीने 'कथरे मग्गे-कतरः मार्गः' किस प्रकार का मोक्षप्राप्तिका मार्ग 'अक्रवाए-आख्यातः' कहा है 'जं मना उज्जु पावित्ता-यं मार्गम् ऋजु प्राप्य' जिस सरल मार्गको पाकर 'दुत्तरं ओघ तरह-दुस्तरम् ओघं तरति' जीव दुस्तर ऐसे संसार को पार करता है ॥१॥ ___ अन्वयार्थ-मतिमान पाहन (मत हननकरो, किसी को मत हनन करो' ऐसा उपदेश देने वाले) तीर्थकर महावीर ने कौनसा मोक्ष मार्ग कहा है ? जिस सरल मार्ग को प्राप्त करके दुस्तर भवप्रवाह को भव्य जीव पार करता है ? ॥१॥ टीकार्य -एक स्थान से दूसरे स्थान को प्राप्त कराने वाला पन्थ मार्ग कहलाता है। मार्ग दो प्रकार का है। प्रशस्त और अप्रशस्त या द्रव्यमार्ग और भावमार्ग अथवा लौकिक मार्ग एवं लोकोत्सरमार्ग इनमें द्रव्यमार्ग लौकिक है और भाषमार्ग लोकोत्तर है जो मोक्ष में पहुंचाने पीर स्वामी 'इयरे मग्गे- कतरः मार्गः' या शहरी भाक्ष प्राप्तिम भाग 'अक्खाए-आख्यातः' ४ो छ. 'जमग उजु पावित्ता-यं मार्गम् ऋतु प्राप्य' सण सेवा२ मानना श्रय ने दुत्तर ओध ताइ-दुस्तर ओध' तरति' दुतर सेवा संसार तरालय छे. अर्थात मोक्ष प्राप्त ४२ छ, ॥१॥ અન્વયાર્થ–મતિમાન મોહન (કંઈ પણ પ્રાણીને ન મારે) એ પ્રમાછેને ઉપદેશ આપવાવાળા તીર્થકર શ્રી મહાવીર સ્વામીએ કર્યો મેક્ષ માર્ગ કહ્યો છે કે જે સરલ માર્ગને પ્રાપ્ત કરીને દુસ્તર એવા ભવ પ્રવાહને ભવ્ય જીવ પાર કરેલા ટીકાથ.--એક સ્થાનથી બીજા સ્થાનને પ્રાપ્ત કરાવવાવાળે ૫-માર્ગ કહેવાય છે. માર્ગ બે પ્રકાર છે. પ્રશસ્ત અને અપ્રશસ્ત અથવા દ્રવ્યમાર્ગ અને ભાવમાર્ગ અથવા લૌકિક માર્ગ અને કેત્તર ભાગમાં તેમાં દ્ર માગ For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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