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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ८ उ.१ वीर्यस्वरूपनिरूपणम् रहितं तद अफलं पापफलाजनकं भवति निर्जरार्थमेव सर्व भवतीति भावः। सस्यक्वतां सर्वमेव संयमतपःप्रधानमनुष्ठानं भवति संयमास्याऽनाश्रवरूपत्तांत, तथा-तपपो निर्जराफलकत्वात् । तथोक्तं भगवता भगवत्याम् 'संजभे अणण्हयफले तवे वोदाणफले ॥ईत २३॥ मूलम्--सेसि वि तंबोण सुद्धो, निक्खंता जे महाकुला। जन्नेवन्ने वियाणंति, न सिलांग पवेजइ ॥२४॥ छागा--तेपा मपि तपो न भुद्धं, निष्क्रान्ता थे महाकुलाः । यन्नाऽये विजानन्ति, न श्लोक प्रवेदयेत् ।।२४॥ अनुष्ठान शुद्ध कपायादि दोषों से रहित और निर्जरा के लिए ही होता है। सम्यक्त्ववान् पुरुष का सभी अनुष्ठान संथम तप प्रधान होता है, भगवती सूत्र में भगवान ने कहा है 'संयम का फल आप्रव का रुक जाना है और तप का फल कर्म की निर्जरा होना है ॥२३॥ 'तेसिं वि तबो ण सुद्धो' इत्यादि। शब्दार्थ--'तेसिं वि तवो ण सुद्धो-तेषामपि तपो न शुद्धं' उनका तप भी शुद्ध नहीं है 'जे महाकुलानिवखना-ये महाकुलाः निष्क्रान्ताः' जो महाकुल वाले प्रव्रज्यालेकर पूजा सत्कार के लिये तप करते हैं 'जन्नेवन्ने वियाणंति-यत् नैव अन्ये विजानन्ति' इसलिये दान में श्रद्धा रखनेवाले दूसरेले ग जिसमें जाने नहीं, इस प्रकार आत्मार्थी को संप. થન, યમ, નિયમ વિગેરે અનુષ્ઠાન શુદ્ધ એટલે કે કષાય વિગેરે દેથી હિત અને નિજ આપવાવાળા જ હોય છે. સમ્યકત્વવાળા પુરૂષના સઘળા - અનુષ્ઠાને સંયમ અને ત૫ પ્રધાન જ હોય છે. ભગવતીસૂત્રમાં ભગવાને કહ્યું છે કે-સંયમનું ફળ આવને રોકવું તે છે. અને તપનું ફળ કર્મની નિર્જરા થવી તે છે. પરવા 'तेसि वि तो ण सुद्धो' त्यात सन्हा -'सि वि तवो ण सुद्धो-तेषामपि तपो न शुद्धं' भनु त५ ५५ शुद्ध नथी. 'जे महाकुला निक्खंता-ये महाकुलाः निष्क्रान्ताः २ मण प्रवृल्या सन पूजसने माटे त५ ५२ छ, 'जन्नेवन्ने वियाणवि. यत् नैव विजानन्ति' तेथी दानमा श्रद्धा सा भीnait तो नही सु० ८९ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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