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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०० सूत्रकृताङ्गस्त्रे छाया-ये चाऽबुद्धा महाभागा वीरा असम्यक्त्वदर्शिनः । - अशुद्धं तेषां पराक्रान्तं सफलं भवति सर्वशः ॥२२॥ अन्वयार्थः--(जे याऽबुद्धा) ये चाऽबुद्धाः-धर्म प्रति अविज्ञातपरमार्थाः (महामागा) महाभागाः-जगत्पूजनीयाः (वीर।) वीराः-सुभटा, अपि (असमत्सदसिणो) असम्यक्त्वदर्शिनः-मिथ्यादृष्टयः सन्ति तदा-(तेसिं परक्कतं असुद्ध) तेषां बालानां तपो दानादिषु पराक्रान्तं पराक्रमणमुद्यमरूपम् तत् अशुद्धम्अविशुद्धिकारि प्रत्युत कर्मबन्धनाय (सनसो सफलं होइ) सर्वशः-सर्वप्रकारेण सफलं कर्मबन्धायैव भवतीति ॥२२॥ 'जे य बुद्धा इत्यादि। . शब्दार्थ--'जे याऽबुद्धा-ये चाऽबुद्धाः' जो पुरुष धर्म के रहस्यको नहीं जानते हैं 'महाभागा-महाभागाः' किन्तु जगत् में पूजनीय माने जाते हैं 'वीरा असंमत्तदंसिणो-वीराः असम्यक्त्वदर्शिनः' एवं शत्रु की सेना को जीतनेवाले वीर है 'तेसिं परक्कंतं असुद्धं-तेषां परा. कान्तम् अशुद्धम्' उनका तपदान आदि में उद्योग अशुद्ध है 'सब्यसो सफलं होइ-सर्वशः सफलं भवति' और वह कर्मबन्ध के कारणरूप होता है ॥२२॥ अन्वयार्थ--जो पुरुष जगत्पूजनीय हैं, वीर हैं किन्तु धर्म के परमार्थ को नहीं जानते और मिथ्यादृष्टि हैं, उनका तप दान आदि अशुद्ध है और वह कर्मबन्ध रूप फल का जनक है ॥२२॥ 'जे याऽबुद्धा' त्यादि शहा- 'जे याऽयुद्धा-ये चाऽबुद्धाः' रे ५३५ ५म ना २७२यने olya नथी 'महाभागा-महाभागाः' ५२ तुगतमा पूछनीय भानामा भाव छ. वीरा असमत्तदसिणा-वीराः असम्यक्त्वदर्शिनः' तथा शत्रुनी सेनाने तवावाणा पीर छ, 'सि परकंतं असुद्धं- हेषां पराक्रान्तम् अशुद्धम्' तेभनी तप, दान विगेरेमा धोn शुद्ध छे. 'सव्वसो सफलं हे।इ-सर्वशः सफलं भवति' भने તે કર્મબંધના કારણરૂપ થાય છે પરરા - अन्याय-२ ५३२॥ गगनीय छे, वीर छ, परतु यम ना ५२. માર્થને જાણતા નથી. અને મિથ્યા દૃષ્ટિવાળા હોય તેઓનું તપ, દાન, વિગેરે અશુદ્ધ કહેવાય છે, અને તે કર્મ બન્યરૂપ ફળ આપનારું છે. પારરા For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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