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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. थु. अ. ६ उ. १ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५१३ अन्वयार्थः - (जहा) यथा ( उदहीणं) उदधीनां समुद्राणाम् मध्ये (सयंभू से) स्वयंभूरमणः समुद्रः श्रेष्ठः प्रधानः (नागेनु) नागेषु नागकुमारेषु (धरणिदं सेमाहु) धरणेन्द्र तन्नामकन्द्र श्रेष्ठ माहुः (खोओदए वा रसवे जयंते) क्षोदोदक:-इक्षु रसोदकः समुद्रो वा रसवैजयन्तो रसवत्सु प्रधानः, तथा - ( तवोवहाणे) तप उपधाने विशिष्टतयविशेषे (मुणि वेजयं ने) मुनिवैजयन्तः- मुनिर्भगवान् महावीरो वैजयन्तःप्रधान इति ||२०|| 'जहा सयंभू' इत्यादि । शब्दार्थ - 'जहा - यथा' जैसे 'उदहीणं उदधीनाम्' समुद्रों में 'सयंभूसेडे- स्वयंभू श्रेष्ठ' स्वयंभूरमण समुद्र श्रेष्ठ है 'नागेसु - नगेषु' तथा नागकुमारों में 'धरणिंदे से आहु-धरणेन्द्रं श्रेष्ठम् आहुः' धरणेन्द्र को श्रेष्ठ कहते हैं 'खोओदए वा रसवे जयंते- इक्षुदको वा रसवैजयन्तः ' इक्षुरसोदकसमुद्र सब रस वालों में उत्तम है तथा 'तोषहाणे- तप उपधाने' इसी प्रकार विशिष्ट तप के द्वारा 'मुणिवे जयंते - मुनिवैजयन्तः ' मुनि श्री भगवान् महावीर स्वामी सबसे प्रधान है | २०|| अन्वयार्थ - जैसे समुद्रो में स्वयंभूरमण समुद्र सबसे प्रधान है, नागकुमारों में धरणेन्द्र नामक इन्द्र प्रधान है, इक्षुरसोदक नामक समुद्र (शेलडी के रस युक्त समुद्र) समस्त रसवानों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त तपस्वियों में मुनि भगवान् महावीर सर्वश्रेष्ठ हैं ॥२०॥ 'जहा सयंभू' त्याहि शब्दार्थ' - 'जहा-यथा' ने प्रमाणे 'उदहोणं- उदधीनाम्' समुद्रोभां 'सयंभूसेट्ठे- स्वयंभूश्रेष्ठः स्वयंभूरभाष समुद्र श्रेष्ठ छे. 'नागेसु-नागेषु' तथा नामभरोमां 'धिरणिंदे सेट्टे आहु-धरणेन्द्रं श्रेष्ठम आहुः ' घरवेन्द्र श्रेष्ठ 8डे छे. 'खोओदए वा रसवेजयंते - इक्षुदको वा रस वैजयन्तः' क्षुि रसेोडशसमुद्र मधा ४ २सवाणायामां श्रे४ छे तथा 'तवोवहाणे-तप उपधाने' प्रमाणे विशेष प्रारना तप द्वारा 'मुणिवेजय 'ते - मुनिवैजयन्तः ' भुनि श्री महावीर स्वाभी સૌથી પ્રધાન છે ॥ २० ॥ સૂત્રા”—જેમ સમુદ્રોમાં સ્વયંભૂમણું સમુદ્ર સર્વોત્તમ છે, તથા નાગ કુમારામાં જેમ ધરણેન્દ્ર નામના ઈન્દ્ર શ્રેષ્ઠ છે, અને સમસ્ત રસયુક્ત પદાર્થોમાં ઇક્ષુરસાદક નામના સમુદ્ર શ્રેષ્ઠ છે, એજ પ્રમાણે સાસ્ત તપસ્વીએમાં ભગવાન મહાવીર સશ્રેષ્ઠ છે. ારના सु० ६५ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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