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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४७९ अन्वयार्थः-(आसुपन्ने) अशुपज्ञः-उत्पन्नदिव्यज्ञानः, (कासवे) काश्यपःकाश्यप गोत्रोत्पन्नः (मुणी) मुनिः (जिणाणं) जिनानाम् ऋषभादीनाम् (इणं) इमम् (अणुत्तरं) अनुत्तरं-सर्वतः श्रेष्ठम् (धम्म) धर्म-श्रुतचारित्ररूपम् (णेया) नेता तस्य प्रणेता (दिवि) दिवि-स्वर्गे (सहस्सदेवाण) सहस्र देवानाम् (इंदेव) इन्द्र इब (महाणु भावे विसि) महानु माया-महाभाववान् विशिष्टः प्रधान इति ॥७॥ 'अणुत्तरं धम्ममिण' इत्यादि। शब्दार्थ-'आसुपन्ने-आशुप्रज्ञा' शीघ्र बुद्धिशले 'कासवे-काश्यपः' काश्यपगोत्री 'मुणी-मुनिः' मुनि श्री बर्द्धमान स्वामी जिमगाणं-जिना. नाम् ऋषभ आदि जिनवरों के इणं-दम' इस 'अणुतरं-अनुत्तरम्' सबसे श्रेष्ठ 'धम्म-धर्मम्' धर्म के 'नेया-नेता' प्रणेता है जैसे 'दिदिदिवि स्वर्गलोक में 'महस्सदेवाण-र्स इस्रदेवानाम्' हजारों देवताओं का 'इंदेव-इन्द्रइय' इन्द्र नेता है एवं 'महाणु भावे विसिटे-महानुभावः विशिष्ट अधिक प्रभावशाली है इसी प्रकार भगवान् सब जगत में सर्वोत्तम है ॥७॥ ____ अन्वयार्थ-आशुप्रज्ञ अर्थात अनन्तज्ञानी, काश्यप गोत्र में उत्पन्न, मुनि वर्द्धमान स्वामी, ऋषम आदि जिनेश्वरों के इस धर्म के आद्य प्रणेता हैं । जैसे स्वर्ग में इन्द्र सभी देलताओं में महान प्रभावशाली हैं-सर्वश्रेष्ठ हैं ॥७॥ 'अणुत्तर धम्ममिण' या शा-'आसुपन्ने-आशुपक्षः' शीघ्र मुद्धिवाणा 'कासवे काश्यपः' अश्य५. मात्री 'मुणी-मुनिः' मुनि श्री १ भान स्वामी 'जिणाणं-जिनानाम्' ऋषम वगैरे निरांना 'इणं-इम' मा 'अणुत्तरं-अनुत्तरम्' माथी श्रेष्ठ 'धम्मधर्मम्' मा 'नेया-नेता' प्रणेता छ. 'दिवि-दिवि' २१ 'सहरसदेवाणं -सहस्रदेवानाम्' । वातासाना 'इंदेव-इन्द्र इव' नेता छ. मेष 'महाणुभावे विसिट्टे-महानुभावः विशिष्टः' मा प्रभावशाली छ र પ્રકારે ભગવાન બધાજ જગતમાં સર્વોત્તમ છે ૭ સૂત્રાર્થે–આશુપ્રજ્ઞ (શીધ્ર પ્રજ્ઞાવાળા) એટલે કે અનન્તજ્ઞાની, કાશ્યપ ગોત્રમાં ઉત્પન્ન થયેલા મુનિ વર્ધમાન સ્વામી, કષભ આદિ જિનેશ્વરના ધર્મના આદ્ય પ્રણેતા છે. જેમાં સ્વર્ગમાં ઈન્દ્ર બધાં દેવે કરતાં પ્રભાવશાળી હોય છે, એ જ પ્રમાણે સકળ સંસારમાં તીર્થંકર ભગવાન સૌથી વધારે प्रमाणी- सह-छ. ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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