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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सैमयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ इ. २ नारकीयवेदनानिरूपणम् .. स्वेच्छया गच्छन्ति किन्नु तत्रत्यः सर्वोऽपि व्यवसायव्यवहारः पराधीन एक यातनाभूमिस्वानरकस्येति भावः ॥५॥ मूलम्-ते' संपेगाढंसि पर्वजमाणा सिलाहि हम्मंति निपातिणीहिं। संतावणी नाम चिरद्वितीया संतप्पती जत्थ असाहुकम्मा॥६॥ छाया-ते संपगाढं प्रपद्यमानाः शिलाभिहन्यन्ते निपातिनीभिः। ___संतापिनी नाम चिरस्थितिका संताप्यन्ते यत्र असाधुकर्माणः ॥६॥ अन्वयार्थः-(ते) ते नारकनीयाः (संपगाढंसि) संप्रगाढम्-असह्यवेदनायुक्त नरके (पवज्जमाणा) प्रपद्यमानाः गन्तारः (निपाविणीहिं) निपातनीभिः-अधः पातयितुं योग्याभिः (सिलाहिं) शिलाभिः पाषाण खण्डैः (हम्मंति) हन्यन्ते ताडयन्ते (संतावणी नाम) संतापनी नाम कुंभी (चिरहिनीया) चिरस्थितिका बहुकालअपनी इच्छा से कहीं विश्राम लेते हैं और न कहीं चलते हैं । वहां का सम्पूर्ण व्यवसाय व्यवहार पराधीन ही है । क्योंकि नरक तो केवल यातनाभूमि ही है ॥५॥ 'ते संपगादसि' इत्यादि। शब्दार्थ-'ते-ते' वे नारकजीव 'संपगादंसि-संप्रगाढे अधिक वेदनायुक्त असह्य नरक में 'पवज्जमाणा-प्रपद्यमानाः' गए हुए 'निपा. तिणीहि-निपातिनीभिः' सन्मुख गिरने वाली 'सिलाहि-शिलामि पाषाण के खण्डों से 'हम्मंति-हन्यन्ते' मारे जाते हैं 'संतावणी नामसंतापिनी नाम संतापनी अर्थात् कुम्भी नाम का नरक चिरद्वितीयाचिरस्थितिका' पल्योपम सागरोपम कालपर्यन्त स्थितिवाला है દશા ભેગવવી પડે છે. પરમધામિકે તેમને જે જે યાતનાઓ આપે, તે તેમને સહન કરવી જ પડે છે. આ રીતે આ નરકસ્થાને યાતનાભૂમિ જેવાં જ છે પણ _ 'ते संपगाढ सि' त्याह शहाथ-'-' ते ना२४ ७१ 'संपगाढ'सि-संप्रगाढे' मावि वहन युद्धत अस न२४मा 'पवज्जमाणा-प्राद्यमानाः' गये। 'निपातिणीहि-निपातिनीभिः' सामे मावाने ५४ावाणी 'सिलाहि-शिलाभिः' पत्थरना माथी 'हमतिहन्यन्ते' भाषामा भावे . 'संतावणीनाम-संतापनीनाम-मर्थात् oil नाम: २४ 'चिरद्वितीया-चिरस्थितिकाः' ५८या५म साग५५ १५यत स्थिति पाछे, 'जत्थ-यत्र' रेभा 'असाहुकम्मा-अमाधुकर्माणः'' ५५४ ४ापागा For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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