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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम्-असूरियं नाम महाभितावं अंधं तमं दुप्पतरं महंत । उडूं अहेअंतिरियं दिसासुसमाहिओ जत्थगणी झियाई।११। छाया-असूर्य नाम महाभिमाय मन्धन्तमो दुष्पतरं महान्तम् । ऊर्ध्वमस्तियन दिशामु समाहितो यत्राग्निः ध्मायते ॥ १।। अन्वयार्थ:-(अभूरियं नाम) अमूर्य नाम-यत्र सर्यो नास्ति (महाभिनाव) महाभितापं-महातापयुक्तं (अंधं तमं दुपतरं महत) अन्धं तमो दुष्मतरं महान्तम् परमाानिक देव नारकों के कर्मों के अनुसार ही किसी को जल में गिराते है, किसी को भाड में भूनते हैं और किसी को आग में पकाते हैं ॥१० । शब्दार्थ- 'अनूरियं नाम-अस्सूर्य नाम' जिसमें सूर्य नहीं है महाभिता-महाभितापं' और जो महान् ताप से युक्त है 'अंधं तमं दुप्पतरं महंत-अन्धं तमो दुष्प्रतरं महान्तम्' तथा जो भयंकर अंधकार से युक्त एवं दुःख से पार करने योग्य और महान् है 'जस्थ-यत्र' जहाँ जिस नरकावास में 'उडूं-ऊर्ध्वम्' ऊपर 'अहे-अधः' नीचे 'तिरियंतिर्यक् तथा तिरछी 'दिसासु-दिशासु' दिशाओं में समाहिया-समा. हितः सम्यक् प्रकार से व्यवस्थापित 'गणी-अग्निः' अग्नि 'जियाईध्मायते' जलती रहती है ॥११॥ अन्वयार्थ--जहां सूर्य नहीं है, जो घोर संताप से युक्त है, अन्धकारमय है, दुस्तर है और महान है तथा जहां ऊपर, नीचे और तिर्ण કમ અનુસાર જ શિક્ષા કરે છે. તે શિક્ષા રૂપે કેઈને પાણીમાં ડુબાવવામાં આવે છે, તે કોઈને ભઠ્ઠીમાં ચણાની જેમ શેકવામાં આવે છે, તે કેઈને આગ પર માંસની જેમ પકાવવામાં આવે છે તેના शाय-'असूरिय नाम-असूर्य न म' मा सूर्य न य तम २ 'महाभिता-महाभितापम्' मला तपाणु डाय छ, तथा रे 'अंधं तमं दुप्पतरं महंत-अंध तमो दुष्प्रतरं महान्तम्' तारे भय ४२ वा धाराथी सततम मथी पा२ पाभा योग्य भने महान् छ, 'जत्थ--यत्र' रे न२४ासभा 'उडूढं-ऊर्ध्वम्' अ५२ 'अहे-अधः' नीचे तिरिय-तिर्यक' तथा तिरछी 'दिमासु-दिशासु' EिALHi 'समाहिया समाहितः' सारी री राम पामा मावस 'अगणी--अग्निः' मनि 'झियाई ध्मायते' मणती २७ छ ।॥११! સૂત્રાર્થ– જયાં સૂર્યનાં દર્શન પણ થતા નથી. જે ઘેર સંતાપથી યુક્ત છે, જે અંધકારમય છે, જે દુસ્તર અને મહાનું છે, તથા જેની ઉપર, નીચે For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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