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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे यादृश्यो वेदनाः समुत्पद्यन्ते, ताः पश्चमाध्ययने प्रतिपाद्यन्ते। तदनेन सबन्धेनाऽऽ. यातस्य पश्चमाऽध्ययनस्प इदमादिमं सूत्रम्-'पुच्छिस्सई' इत्यादि। मूलम्-पुच्छिस्सेहं केवलियं महसि कहंभितावा णरंगा पुरत्था। अंजाणओं मेमूणि हिजाणं, कहं नुबाला नरयं उविति।१। . छापा- पृथ्वानहं के बलिकं महर्षि कथमभितापा नरकाः पुरस्तात् ।।.. अनानतो मे मुने! बूहि जानन् कथं नु वाला नरकमुपान्ति ॥१॥ निपात होता है अतएव नरक में होनेवाली वेदनाओं को इस पांचवें अध्ययन में कहते हैं । इस सम्बन्ध से प्राप्त पांचवें अध्ययन का यह प्रथम सूत्र है-'पुच्छिस्प्तह' इत्यादि । .. शब्दार्थ-- 'अहं-अहम्' मैंने (सुधर्मा स्वामीने) 'पुरस्था-पुरस्तात्' पहले 'केवलियं-केवलिनम्' केवलज्ञान वाले 'महेसिं-महर्षि' महर्षि ऐसे बर्द्धमान महावीर स्वामी को 'पुच्छिस्स-पृष्टवान्' पूछा था कि 'णरगा-नरका' रत्नप्रभादि नरक 'कहंभिताचा-कथमभितापाः' कैसे पीडा करने वाले हैं 'मुणी-हे मुने' हे भगवन् 'जाणं-जानन्' आप इसे जानते हैं अतः 'अजाण भो मे हि-अजाननो मे ब्रूहि नहीं जानने वाले मुझको आप कहें 'बाला-घालाः' अज्ञानी 'कहिं नु-कथं नु' किस प्रकार 'नरयं-नरकम्' नरक को 'उविति-उपयान्ति' प्राप्त करते हैं ॥१॥ વશ થનારા પુરુષ અવશ્ય નરકમાં જ જાય છે. નરકમાં જનાર જીવને કેવી કેવી વેદના સહન કરવી પડે છે તેનું નિરૂપણ આ પાંચમા અધ્યયનમાં કરવામાં આવ્યું છે. આગલા અધ્યયને સાથે આ પ્રકારને સંબંધ ધરાવતા पांयमा अध्ययननु ५९ सूत्र मा प्रभाये छ–'पुच्छिस्सई' त्याह- .. शा---'अह-अहम्' में (सुधा स्वामी २) 'पुरत्था पुरस्तात्' पसा 'कैवलियं-केवलिकम्' ज्ञान॥ 'महेसि-महर्षिम्' भाव मे १५ भान महावीर साभीने 'पुच्छिस्स-पृष्टवान्' ५७ हेतु -'गरगा-नरकाः' २.न. विगेरे न२३। 'कहं भितावा-कथमभितापाः' पी पी. ४२११ सोय १ मणी-हे मुने!' सन् 'जाणं-जानन्' मा५ । पातने an छ। तेथी अजाणओ मे बूहि-अजानतो मे बहि' न पापा 24। भने २५१५ 'बाला-बालाः' अज्ञानी 'कहिं नु-कथंनु' वी 01 'नरयं-नरकम्' न२७ने 'उपिति-उपयान्ति' प्रत ४२ छ ? ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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