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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ.२ स्खलितचारित्रस्य कर्मबन्धनि. ३१७ छाया-एवं खलु तासु विज्ञप्तं संस्तवं संवासं च वर्जयेत् । - तजातिका इमे कामाः अवधकरा चैवमाख्याताः ॥१९॥ अन्वयार्थः-(तासु) तातु स्त्रीषु (एवं खु विन्नप्प) एवं खलु उक्तमकारेण विज्ञप्तं कथितर (संथवं संघास च वाजेन्ना) संस्सव संवासं च वर्जयेत् , संस्तवं स्त्रीगो परिचयं स्त्रीभिः सहैकत्रवास वा परिहरेत् एवं कथितमिति, किमर्थं परिचयं-सहवासं त्यजेत्तत्राह-(तज्जातिया इमे कामा) तज्जातिका इमे कामाः-इमे कामाः शब्दादयः तज्जातीयाः स्त्रीभ्यः समुत्पन्नाः (वज्जकरा य एवमक्खाए) अपधाराः नरकनिगोदादिकारणभूतपापोत्पादका पत्र उक्तरूपेण आख्याता कथिताः तीर्थकरैरिति ॥१९॥ ___ अब सूत्रकार उसंहार द्वारा स्त्रीसम्बन्ध का परिहार करने के लिए कहते हैं-'एवं' इत्यादि। शब्दार्थ--'ताप्लु-तासु' स्त्रियों के विषय में एवं खु विषय-एवं खलु विज्ञत' इसी प्रकार का कथन किया है 'संथवं संबसं च वज्जेउजासंस्तवं संवासं च वर्जयेत् । इस कारण साधु स्त्रियों के साथ परिचय और सहवास वर्जित करे 'तजातिया इमे कामा-तजातिकाः इमे कामाः' स्त्री के संसर्ग से उत्पन्न होने वाला शब्दादि काम भोग 'वज्जकरा य एवमक्खाए-अवधकरा एवमाख्याता:' पाप को उत्पन्न करता है ऐसा तीर्थंकरो ने कहा है ॥१९॥ ___ अन्वयार्थ-इस प्रकार स्त्रियों के विषय में पूर्वकथित परिचय का स्याग करना चाहिए। उनके साथ निवास भी नहीं करना चाहिये । क्योंकि ये काम स्त्री जातीय हैं अर्थात् स्त्रियों से ही उत्पन्न होते हैं, 1 હવે સૂત્રકાર આ ઉદ્દેશકનો ઉપસંહાર કરતા સ્ત્રીસંપર્કને પત્યિાગ ४२वान पहेश मा छे-‘एवं' या6-- Aval -'तासु-तासु' सिमाना सम एवं खु विन्नप्पं-एवं खलु विज्ञप्त' २५ प्रमाणे नु. ४५१ ४२३ छे. 'संथवं संवासं च वजेज्जा-संस्तवं संवासं. च धर्जयत्' मा सरथी साधु मे स्त्रियांनी सायना परिचय भने सपासना त्या ३२वी. ४६२२ तज्जातिया इमे कामा-जनातिकाः इमे कामाः स्वीना AAnal 64-1 थवावाणा शvale भने 'वज्ज करा य एवमाखाए-अवद्यकरा एषमाख्याताः ' ५५२ ५-- ४२ छ. थेप्रमाणे तीर्थ शेये घुछ, ॥१६॥ સૂત્રાર્થ-આ પ્રકારે પ્રસંગના પૂર્વોક્ત પરિણામોને વિચાર કરીને સાધુએ સ્ત્રીઓને પરિચય રાખવું જોઈએ નહીં, તેમની સાથે નિવાસ પણ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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